नजर अधखुली सी
ख्वाव अधूरे से
आसमान कि गहराई पे पर्दा
बादल झुके झुके से।
अविरल धार समुद्र उन्मुख
पूर्ण को जाने कैसे भरता।
एहसास सुख का या
सुख क्या? एहसास कि कोशिश।
हर वक्त एक द्वन्द
किसी और से नहीं
खुद से खुद का तकरार।
नियत काल कि गति
फिर क्यों नहीं कदम का तालमेल।
जो है उसे थामे,सहेज ले
या कुछ बचा ले जगह
जो न मिला उसकी खोज में।
हर रोज जारी है
अधूरे को भरने कि
और भरे हुए को हटाकर
नए जगह बनाने का द्वन्द । ।
ख्वाव अधूरे से
आसमान कि गहराई पे पर्दा
बादल झुके झुके से।
अविरल धार समुद्र उन्मुख
पूर्ण को जाने कैसे भरता।
एहसास सुख का या
सुख क्या? एहसास कि कोशिश।
हर वक्त एक द्वन्द
किसी और से नहीं
खुद से खुद का तकरार।
नियत काल कि गति
फिर क्यों नहीं कदम का तालमेल।
जो है उसे थामे,सहेज ले
या कुछ बचा ले जगह
जो न मिला उसकी खोज में।
हर रोज जारी है
अधूरे को भरने कि
और भरे हुए को हटाकर
नए जगह बनाने का द्वन्द । ।
यही जीवन है ...
ReplyDeleteइसी द्वन्द से जीवन का मज़ा भी है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति ,,,
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं.
RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
सहेज ले
ReplyDeleteया कुछ बचा ले जगह
जो न मिला उसकी खोज में।
बहुत खूबसूरत रचना !
बहुत ही सुन्दर !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहर रोज जारी है
ReplyDeleteअधूरे को भरने कि
और भरे हुए को हटाकर
नए जगह बनाने का द्वन्द । ।
...और यह द्वंद्व अनवरत जारी रहता है उम्र भर....बहुत सुन्दर...
आभार आपका .........
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