Showing posts with label चाह. Show all posts
Showing posts with label चाह. Show all posts

Thursday, 31 October 2013

द्वन्द

नजर अधखुली सी 
ख्वाव अधूरे से 
आसमान कि गहराई पे पर्दा 
बादल झुके झुके से। 
अविरल धार समुद्र उन्मुख 
पूर्ण को जाने कैसे भरता। 
एहसास सुख का या 
सुख क्या? एहसास कि कोशिश।  
हर वक्त एक द्वन्द 
किसी और से नहीं 
खुद से खुद का तकरार। 
नियत काल कि गति 
फिर क्यों नहीं कदम का तालमेल। 
जो है उसे थामे,सहेज ले 
या कुछ बचा ले जगह 
जो न मिला उसकी खोज में। 
हर रोज जारी है 
अधूरे को भरने कि  
और भरे हुए को हटाकर 
नए जगह बनाने का द्वन्द । ।