नव शारदीय नव रात्र की सभी को हार्दिक शुभकामना एवं बधाई। इस रचना को किसी प्रकार के धार्मिक बन्धनों में बंध कर न देखे। स्वाभाविक रूप से किसी के आहात होने से खेद है -----
मन के कुत्सित सेज पर ,
पवित्रता के आवरण झुक गए ।
मूर्त शक्ति की परीक्षा हर रोज,
अमूर्त शक्ति पे सब शीश झुक गए।
नव शारदीय उत्साह का संचार
भाव -भंगिमा बदले ,नहीं विचार।
विरोधाभास के मंडपों में ,
कुम्हार के गढ़े कच्चे रूपों में ,
श्रधा जाने कैसे उभर आते है।
जिस धरा पर लगभग हर रोज ,
कितने कन्या पट खुलने से पूर्व ,
विसर्जित कर दिए जाते है।
आँगन में शक्ति का आंगमन
हर्ष नहीं ,विछोह से मन
परम्पराओ में जाने क्यों ढोते है,
ऐसे विरोधाभास कैसे बोते है।
माँ इस बार कुछ अवश्य करेगी
कुत्सित महिषासुर के विचारो पे
सर्वांग शस्त्रों से प्रहार करेगी। ।
सुन्दर रचना कौशल जी..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना .
ReplyDeleteनई पोस्ट : नई अंतर्दृष्टि : मंजूषा कला
नई पोस्ट : पुरानी डायरी के फटे पन्ने
व्यक्त विचार सच हो!
ReplyDeleteआदरणीय उत्कृष्ट रचना की बधाई !
ReplyDeleteआमीन ... माँ अपना खप्पर चाले ही दे इस बार तो बात बन जाए ...
ReplyDeleteसशक्त भाव .... हमारे परिवेश की विडंबना को सुंदर ढंग से चित्रित किया
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.!
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनायें-