Wednesday, 2 October 2013

एक आत्मा की पुकार

हो आबद्ध युगों -युगों से
निरंतर दर-दर बदलता रहा
मुक्ति की खोज में
अब तक किसी न किसी 
काया संग युक्त ही चलता रहा.…। 

 मै अजन्मा ,जन्म काया
निर्लिप्त ही, न मोह पाया
शस्त्र ,वायु या अग्नि
अशंख्य पीड़ा की जननी  
अन्य भी न संहार पाया  ……. । 

किन्तु अब घुटता यहाँ
काया में बसता जहाँ
मलिनता छा रहा
मै  आत्मा अब
खुद पर ही रोता रहा ……. ।  

सतयुग से भटकता   
कदम बढाता कल्कि तक पंहुचा 
शायद मै  हो जाऊ मुक्त 
अंतिम सत्य से दर्शन 
युगों युगों से अब तक विचरण ……. ।  

धृष्टता सब युगों में देखि
किन्तु अब ये संस्कार 
मन मलिन काया संग करता 
मै आत्मा वेवश लाचार
किन्तु दोष ले पुनः भटकता…… . । 

जीर्ण -शीर्ण रक्षित देह 
व्याकुल विवश कितने से नेह 
मृत जग न छोड़ जाना चाहे 
किन्तु मै हर्षित हो अब 
महाप्रयाण करू इस जग से परे…….. . ।  

करुणा पुकार अब श्याम करू 
इन दिव्यता से उद्धार कर  
मै  भी चाहूँ मुक्ति अब 
खुद से अब इस आत्मा का 
इस धरा से संहार कर…… . । 

10 comments:

  1. करुणा पुकार अब श्याम करू
    इन दिव्यता से उद्धार कर
    मै भी चाहूँ मुक्ति अब

    अनूठी पुकार !!

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  2. बेहद सुंदर प्रस्तुति..कहीं कहीं आपका स्वर करुण तो कहीं कहीं वीररस से ओतप्रोत होता नज़र आ रहा है।।।

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  3. वाह !!! बहुत ही बढ़िया रचना !

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 05/10/2013 को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 017 तेरी शक्ति है तुझी में निहित ...< a href=http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/>
    - पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....

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  5. धन्यवाद उपासनाजी

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  6. बहुत सुन्दर पुकार..
    सुन्दर रचना...
    :-)

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  7. बहुत सुन्दर . नवरात्रि की शुभकामनाएँ .
    नई पोस्ट : नई अंतर्दृष्टि : मंजूषा कला

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  8. अति सुन्दर भाव है इस कविता में....!!!

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