अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं । अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥ "कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्यनही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं ।" — शुक्राचार्य
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : रावण जलता नहीं
नई पोस्ट : प्रिय प्रवासी बिसरा गया
विजयादशमी की शुभकामनाएँ .
बहुत सुंदर
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है- मेरे ब्लॉग में भी समल्लित हों
पीड़ाओं का आग्रह---
http://jyoti-khare.blogspot.in
बेहतरीन, सुंदर रचना !
ReplyDeleteविजयादशमी की शुभकामनाए...!
RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
sundar ..abhiwayakti ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कटाक्ष किया है और सटीक भी.
ReplyDeleteअर्थपूर्ण अच्छी रचना,
बधाई.