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Wednesday 9 October 2013

एक याचना


माता तेरे नाम में   
श्रद्धा अपरम्पार है
झूम रहे है  भक्त सब
नव-रात्र की जयकार है । ।

शक्ति सब तुम में निहित
तुम ही तारनहार हो
सृष्टि की तुम पालनकर्ता 
तुम कल्याणी धार हो  । । 

माता तेरे आगमन पर
कितने मंडप थाल  सजे
क्या -क्या अर्पण तुझको करते
शंख मृदंग करताल बजे। ।

कुछ भक्त है ऐसे भी
जो अंधकार में खोये है
करना चाहे वंदन तेरा
पर जीवन रण में उलझे है। 

क्या लाये वो तुझे चढ़ावा 
जब झोली उनकी खाली है 
श्रद्धा सुमन क्या अर्पित करते 
तेरे द्वार भरे बलशाली है। । 

तू तो सर्व व्यापी मैया
ऐसे  क्यों तू रूठे है
उन्हें देख कर लोग न कह दे  
तेरे अस्तित्व झूठे है। । 

है बैठे  फैलाये झोली कब से 
तेरी कृपा की वृष्टि हो 
बस भींगे उसमे तन मन से 
उनमे भी एक नए युग की सृष्टि हो। । 

Sunday 6 October 2013

विरोधाभास

                        


         नव शारदीय नव रात्र  की सभी को हार्दिक शुभकामना एवं बधाई।  इस रचना को किसी प्रकार के धार्मिक बन्धनों में बंध कर न देखे। स्वाभाविक रूप से किसी के आहात होने से खेद है  -----   

आडम्बरों  के  पट खुल गए ,
मन के कुत्सित सेज पर ,
पवित्रता के आवरण झुक गए  । 
मूर्त शक्ति की परीक्षा हर रोज, 
अमूर्त शक्ति पे सब शीश झुक गए। 
नव शारदीय उत्साह का संचार
भाव -भंगिमा बदले ,नहीं विचार। 
विरोधाभास के मंडपों में ,
कुम्हार के गढ़े कच्चे रूपों में ,
श्रधा जाने कैसे उभर आते  है। 
जिस धरा पर लगभग हर रोज ,
कितने कन्या पट खुलने से पूर्व ,
विसर्जित कर दिए जाते है। 
आँगन में शक्ति का आंगमन 
हर्ष नहीं ,विछोह से मन 
परम्पराओ में जाने क्यों ढोते है, 
ऐसे विरोधाभास कैसे बोते है। 
माँ इस बार कुछ अवश्य करेगी 
कुत्सित महिषासुर के विचारो पे 
सर्वांग शस्त्रों से प्रहार करेगी। ।