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Sunday, 6 October 2013

विरोधाभास

                        


         नव शारदीय नव रात्र  की सभी को हार्दिक शुभकामना एवं बधाई।  इस रचना को किसी प्रकार के धार्मिक बन्धनों में बंध कर न देखे। स्वाभाविक रूप से किसी के आहात होने से खेद है  -----   

आडम्बरों  के  पट खुल गए ,
मन के कुत्सित सेज पर ,
पवित्रता के आवरण झुक गए  । 
मूर्त शक्ति की परीक्षा हर रोज, 
अमूर्त शक्ति पे सब शीश झुक गए। 
नव शारदीय उत्साह का संचार
भाव -भंगिमा बदले ,नहीं विचार। 
विरोधाभास के मंडपों में ,
कुम्हार के गढ़े कच्चे रूपों में ,
श्रधा जाने कैसे उभर आते  है। 
जिस धरा पर लगभग हर रोज ,
कितने कन्या पट खुलने से पूर्व ,
विसर्जित कर दिए जाते है। 
आँगन में शक्ति का आंगमन 
हर्ष नहीं ,विछोह से मन 
परम्पराओ में जाने क्यों ढोते है, 
ऐसे विरोधाभास कैसे बोते है। 
माँ इस बार कुछ अवश्य करेगी 
कुत्सित महिषासुर के विचारो पे 
सर्वांग शस्त्रों से प्रहार करेगी। ।