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Monday 7 April 2014

आंसू

बहते आसुओं कि लड़ी को 
उम्मीदो के धागे से बाँध कर 
मैंने अर्पित कर दिया उसी को 
जिसने ये सोता बनाया। 
न कोई मैल है न शिकायत 
की ये झर्र -झर्र कर बहते है 
शुष्क ह्रदय कि इस दुनिया में 
मुझसे  खुशनसीब कौन है। 
ये गिर कर बिखर न जाए 
बस इतना ही फ़िक्र करता हूँ 
की और कोई मोतियों की लड़ी नहीं 
जो मै तुझको समर्पित कर सकूँ। 
मांगू क्या और तुझसे 
न मिले तो भी रिसती है 
और मिलने के बाद भी 
फिर यूँ  ही बहकती रहती है। 
मैं  जानता हु तू मेरा है ये जताने के लिए  
दर्द बन कर यूँ ही  सताता है 
और तेरी रहमत का क्या कहना 
साथ में आंसू भी दवा बन आ ही जाता है। ।