बहते आसुओं कि लड़ी को
उम्मीदो के धागे से बाँध कर
मैंने अर्पित कर दिया उसी को
जिसने ये सोता बनाया।
न कोई मैल है न शिकायत
की ये झर्र -झर्र कर बहते है
शुष्क ह्रदय कि इस दुनिया में
मुझसे खुशनसीब कौन है।
ये गिर कर बिखर न जाए
बस इतना ही फ़िक्र करता हूँ
की और कोई मोतियों की लड़ी नहीं
जो मै तुझको समर्पित कर सकूँ।
मांगू क्या और तुझसे
न मिले तो भी रिसती है
और मिलने के बाद भी
फिर यूँ ही बहकती रहती है।
मैं जानता हु तू मेरा है ये जताने के लिए
दर्द बन कर यूँ ही सताता है
और तेरी रहमत का क्या कहना
साथ में आंसू भी दवा बन आ ही जाता है। ।
उम्मीदो के धागे से बाँध कर
मैंने अर्पित कर दिया उसी को
जिसने ये सोता बनाया।
न कोई मैल है न शिकायत
की ये झर्र -झर्र कर बहते है
शुष्क ह्रदय कि इस दुनिया में
मुझसे खुशनसीब कौन है।
ये गिर कर बिखर न जाए
बस इतना ही फ़िक्र करता हूँ
की और कोई मोतियों की लड़ी नहीं
जो मै तुझको समर्पित कर सकूँ।
मांगू क्या और तुझसे
न मिले तो भी रिसती है
और मिलने के बाद भी
फिर यूँ ही बहकती रहती है।
मैं जानता हु तू मेरा है ये जताने के लिए
दर्द बन कर यूँ ही सताता है
और तेरी रहमत का क्या कहना
साथ में आंसू भी दवा बन आ ही जाता है। ।