मायने बदलते रहते है पल-पल
शायद कल के होने का
आज में कोई मायने नहीं रहता,
किन्तु फिर भी ,
इतिहास के पन्ने के संकीर्ण झरोखे से
आने वाले कल के होने के मायने में
व्यस्त हम सब
बस कुचलता जाता है आज।।
बेचारा जीर्ण-शीर्ण,
बेवश लाचार आज,
कल को सींचने में
पल-पल बस मुर्झाता जाता है।।
कल के दबे कुचले
घिनौने से अतीत जिसकी दुर्गन्ध
आज की कारखानों में बनी सभ्यता के इत्र
दूर नहीं कर पाते,
किन्तु ऊपर निचे ढलानों
बराबरी और गैर बराबरी के तराजू पर तौलते
विरासत के बोझ से दबे बीते कल
निकलने को आज में आतुर
किन्तु आने वाले कल के मायने में
आज फिर कुचल दिए जाते।।
बीते कल पर शोध और सत्यरार्थ कि तलाश
अँधेरी गर्त पर परी गहन धूलो को
बार-बार झारने की चाहत ,
किन्तु पल-पल आज पर
परत -दर -परत जमा होते धूलो को
हटाने की बैचैनी का
कहीं कोई निशा दीखता ?
बस सुनाई देती है शोर
हर एक नुक्कड़ खाने पर
कल को बदल देने के वादे का ,
और कल को तराशने हेतु
हर पल चलता रहता है हथौड़ा आज पर
आज बस कराहता और कराहता है।
किन्तु अमृत पान हेतु
गरल - मंथन कि कथा से
हमसब प्रेरित लगते है,
शायद आज में कुछ न रखा है।।
शायद कल के होने का
आज में कोई मायने नहीं रहता,
किन्तु फिर भी ,
इतिहास के पन्ने के संकीर्ण झरोखे से
आने वाले कल के होने के मायने में
व्यस्त हम सब
बस कुचलता जाता है आज।।
बेचारा जीर्ण-शीर्ण,
बेवश लाचार आज,
कल को सींचने में
पल-पल बस मुर्झाता जाता है।।
कल के दबे कुचले
घिनौने से अतीत जिसकी दुर्गन्ध
आज की कारखानों में बनी सभ्यता के इत्र
दूर नहीं कर पाते,
किन्तु ऊपर निचे ढलानों
बराबरी और गैर बराबरी के तराजू पर तौलते
विरासत के बोझ से दबे बीते कल
निकलने को आज में आतुर
किन्तु आने वाले कल के मायने में
आज फिर कुचल दिए जाते।।
बीते कल पर शोध और सत्यरार्थ कि तलाश
अँधेरी गर्त पर परी गहन धूलो को
बार-बार झारने की चाहत ,
किन्तु पल-पल आज पर
परत -दर -परत जमा होते धूलो को
हटाने की बैचैनी का
कहीं कोई निशा दीखता ?
बस सुनाई देती है शोर
हर एक नुक्कड़ खाने पर
कल को बदल देने के वादे का ,
और कल को तराशने हेतु
हर पल चलता रहता है हथौड़ा आज पर
आज बस कराहता और कराहता है।
किन्तु अमृत पान हेतु
गरल - मंथन कि कथा से
हमसब प्रेरित लगते है,
शायद आज में कुछ न रखा है।।