ये सावन यु ही बरस रहा होगा
हाथो में तिरंगे भींग कर भी
जकडन से निकलने की आहट में
शान से फरफरा रहा होगा।।
थके पैर लथपथ से
जोश से दिल भरा होगा
बस लक्ष्य पाने को
नजर बेताब सा होगा।।
क्या अरमान बसे होंगे
नयी सुबहो के आने पर
वो अंतिम सुगबुगाहट पर। ।
जो तरुवर रक्त में सिंची
अब लहलहा रहे होंगे
लालकिले से गाँवों के खेत खलिहानों में
सभी धुन भारती के गुनगुना रहे होंगे। ।
लालकिले से गाँवों के खेत खलिहानों में
सभी धुन भारती के गुनगुना रहे होंगे। ।
फिरंगी की दिया बस
टिमटिमा रही होगी
वो बुझने ने पहले
कुछ तिलमिला रही होगी।।
वो जकड बेड़ियो की
कुछ-कुछ दरक रहा होगा
खुशी से मन -जन पागल
मृदंग पे मस्त हो झूमता होगा।
नयी भोर के दीदार को
नयन अपलक थामे रहे होंगे
बीती अनगिनित काली रातो को
हर्ष से बस भूलते होंगे।
कुछ-कुछ दरक रहा होगा
खुशी से मन -जन पागल
मृदंग पे मस्त हो झूमता होगा।
नयी भोर के दीदार को
नयन अपलक थामे रहे होंगे
बीती अनगिनित काली रातो को
हर्ष से बस भूलते होंगे।
जब ये माह आजादी का
युहीं हर साल आता है
क्या रही होगी तब हलचल
पता नहीं क्यों ख्याल आता है।।