अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं । अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥ "कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्यनही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं ।" — शुक्राचार्य
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Wednesday, 14 August 2013
Saturday, 10 August 2013
हलचल अगस्त ' ४७
ये सावन यु ही बरस रहा होगा
हाथो में तिरंगे भींग कर भी
जकडन से निकलने की आहट में
शान से फरफरा रहा होगा।।
थके पैर लथपथ से
जोश से दिल भरा होगा
बस लक्ष्य पाने को
नजर बेताब सा होगा।।
क्या अरमान बसे होंगे
नयी सुबहो के आने पर
वो अंतिम सुगबुगाहट पर। ।
जो तरुवर रक्त में सिंची
अब लहलहा रहे होंगे
लालकिले से गाँवों के खेत खलिहानों में
सभी धुन भारती के गुनगुना रहे होंगे। ।
लालकिले से गाँवों के खेत खलिहानों में
सभी धुन भारती के गुनगुना रहे होंगे। ।
फिरंगी की दिया बस
टिमटिमा रही होगी
वो बुझने ने पहले
कुछ तिलमिला रही होगी।।
वो जकड बेड़ियो की
कुछ-कुछ दरक रहा होगा
खुशी से मन -जन पागल
मृदंग पे मस्त हो झूमता होगा।
नयी भोर के दीदार को
नयन अपलक थामे रहे होंगे
बीती अनगिनित काली रातो को
हर्ष से बस भूलते होंगे।
कुछ-कुछ दरक रहा होगा
खुशी से मन -जन पागल
मृदंग पे मस्त हो झूमता होगा।
नयी भोर के दीदार को
नयन अपलक थामे रहे होंगे
बीती अनगिनित काली रातो को
हर्ष से बस भूलते होंगे।
जब ये माह आजादी का
युहीं हर साल आता है
क्या रही होगी तब हलचल
पता नहीं क्यों ख्याल आता है।।
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