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Wednesday, 14 August 2013

आजादी की वर्षगांठ में नये प्रण अपनाते है

आजादी की वर्षगांठ में नए प्रण अपनाते है

सपने पुरे बेशक न हो ,कुछ कमियां रह जाती है 
दीपक दिया उजाला करती कालिख में घीर जाती है।
पुरखो ने जो  सोचा होगा आज वहाँ  न पहुच सके, 
समरसता की नीव हिली है और खड़े प्रश्न गंभीर नए।  
विचारो में अवनति की आपस में है होड़ मची, 
नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन जैसे इसका मोल नहीं। 
छिद्रान्वेषी बनकर ढूंढे और बहुत मिल जायेंगे 
कमियां हमको बैठे-बैठे चारो ओर दिख जायेंगे।। 

किन्तु कमियों के ही कारण निराशा में  घिरे नहीं 
उन्नत मस्तक  करने को है और भी बाते कई नई, 
हमने कुछ  दिखाया है, दुनिया हमको मान रही 
हममे सारी छमता है दुनिया ऐसा जान  रही। 
आत्मग्लानी मन में भरकर ऐसे कैसे बैठ गए 
बलिदानों के सारे सपने अभी नहीं है रूठ गए। 
    बेशक मन में अंधियारे का सोच यहाँ पर छाया है, 
      पर न भूले  हर दिन सूरज नया सवेरा लाया है।। 

है हमको भी प्रेम देश का ऐसा हम दिखला देंगे 
कुछ हुई हो भूल अगर तो उसको अब सुलझा देंगे। 
गौरव सबके मन में जागे ,सबको अब समझाना है 
देश है मेरा सबसे ऊपर ऐसा अलख जगाना है। 
 दिल पे जो भी गर्द पड़े है झोंका में उड़ाना है ,
सुप्त पड़े शिराओ में आज, चिंगारी धधकाना है।   
हर्षित मन से आओ हमसब  उत्सव ये  मनाते  है, 
आजादी की वर्षगांठ में नये प्रण अपनाते है।।

Saturday, 10 August 2013

हलचल अगस्त ' ४७


     ये सावन यु ही बरस रहा होगा 
       हाथो में तिरंगे भींग कर भी
   जकडन से निकलने की आहट में   
      शान से फरफरा रहा होगा।। 
            थके पैर लथपथ से  
         जोश से दिल भरा होगा 
           बस लक्ष्य पाने को
        नजर बेताब सा होगा।।


            क्या अरमान बसे होंगे 
           नयी सुबहो के आने पर 
      फिरंगी दास्ताँ से निकलने की      
        वो अंतिम सुगबुगाहट पर। । 
         जो तरुवर रक्त में  सिंची 
           अब लहलहा रहे होंगे
 लालकिले से गाँवों के खेत खलिहानों में
 सभी धुन भारती के गुनगुना रहे होंगे। ।  


          फिरंगी की दिया बस
          टिमटिमा रही होगी 
           वो बुझने ने पहले 
      कुछ तिलमिला रही होगी।।
         वो जकड बेड़ियो की
      कुछ-कुछ दरक रहा  होगा
       खुशी से मन -जन पागल
  मृदंग पे मस्त हो झूमता होगा।


          नयी भोर के दीदार को
    नयन  अपलक थामे रहे होंगे
  बीती अनगिनित काली रातो को
         हर्ष से बस भूलते होंगे।   
      जब ये माह  आजादी का 
        युहीं हर साल आता है 
     क्या रही होगी तब हलचल 
   पता नहीं क्यों ख्याल आता है।।