आजादी की वर्षगांठ में नए प्रण अपनाते है
सपने पुरे बेशक न हो ,कुछ कमियां रह जाती है
दीपक दिया उजाला करती कालिख में घीर जाती है।
पुरखो ने जो सोचा होगा आज वहाँ न पहुच सके,
समरसता की नीव हिली है और खड़े प्रश्न गंभीर नए।
विचारो में अवनति की आपस में है होड़ मची,
नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन जैसे इसका मोल नहीं।
छिद्रान्वेषी बनकर ढूंढे और बहुत मिल जायेंगे
कमियां हमको बैठे-बैठे चारो ओर दिख जायेंगे।।
किन्तु कमियों के ही कारण निराशा में घिरे नहीं
उन्नत मस्तक करने को है और भी बाते कई नई,
हमने कुछ दिखाया है, दुनिया हमको मान रही
हममे सारी छमता है दुनिया ऐसा जान रही।
आत्मग्लानी मन में भरकर ऐसे कैसे बैठ गए
बलिदानों के सारे सपने अभी नहीं है रूठ गए।
बेशक मन में अंधियारे का सोच यहाँ पर छाया है,
पर न भूले हर दिन सूरज नया सवेरा लाया है।।
है हमको भी प्रेम देश का ऐसा हम दिखला देंगे
कुछ हुई हो भूल अगर तो उसको अब सुलझा देंगे।
गौरव सबके मन में जागे ,सबको अब समझाना है
देश है मेरा सबसे ऊपर ऐसा अलख जगाना है।
दिल पे जो भी गर्द पड़े है झोंका में उड़ाना है ,
सुप्त पड़े शिराओ में आज, चिंगारी धधकाना है।
हर्षित मन से आओ हमसब उत्सव ये मनाते है,
आजादी की वर्षगांठ में नये प्रण अपनाते है।।
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भाई कौशल जी
ReplyDeleteशुभ प्रभात
आपकी प्रतिक्रिया नयी-पुरानी हलचल में आज देखी
वस्तुतः आज छियाछठवीं वर्षगाँठ ही है....
पर कल और आज के अखबारों मे सड़सठवीं ही लिखा है...
1947 का वर्ष भी जोड़ लिया मीडिया वालों ने
आप आए....प्रतिक्रिया लिखी...मन प्रफुल्लित हुआ....आते रहिये...
सादर
यशोदा
बेशक मन में अंधियारे का सोच यहाँ पर छाया है,
ReplyDeleteपर न भूले हर दिन सूरज नया सवेरा लाया है।।
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नहीं भूलनी है यह बात और कविता के मन प्राण में बसे भावों संग आगे बढ़ना है!
सुन्दर लेखन!
धन्यवाद
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