Saturday, 31 August 2013

अस्तित्व


कुछ शेष रह जाते यहाँ
यादो की परछाई में
कुछ के निशां भी नहीं होते  
बह जाते है वक्त की पुरवाई में। 
किसकी किस्मत क्या  है
ये तो बस बहाना है,
गुजरे कर्मो को इस लिबास से
ढकने का रिवाज पुराना है। 
खुद में रहकर ही ,
खुद के लिए जो  गुजर जाते है ,
उन मजारो पर देखो जाकर
वहाँ घास-फूसों का आशियाना है। 
अपने आप को छोड़कर जो
औरों के लिए दर्द  लेते है 
अपनी पलकों के नींद किसी और को देते है
जिनका हाथ किसी गैर का सहारा है 
कंधो पे भार खुद का नहीं 
अरमानों का बोझ कई का संभाला है 
जो आवाज है कई 
हकलाती जुवानों का 
जिनके कानों में गूंजती है टीस 
किसी के कराहने का। 
उनके अस्तित्व ढूंढे नहीं जाते
वो सोते है गहरी नींद में
और लोग रोज उन्हें जगाने वहाँ आते 
झुके हाथों से नमन उन्हें करते है 
तुम हो साथ मेरे बस ऐसा कहते है। । 
इन बातों को शब्दों में गढ़ना कितना आसान  है ,
लगता नहीं कोई इससे अंजान है , 
हम उनसे अलग नहीं कोई 
किन्तु सोच शायद, कभी कर्म में बदल जायेगे 
कोई अस्तित्व हम भी गढ़ जायेंगे। । 

3 comments:

  1. किन्तु सोच शायद, कभी कर्म में बदल जायेगे
    कोई अस्तित्व हम भी गढ़ जायेंगे। ।

    बहुत बढ़िया उम्दा अभिव्यक्ति ,,,

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  2. विचार ही कर्म में परिणत होते हैं...
    विचार शुभ हों तो अस्तित्व गढ़ ही लिया जाएगा!

    सुन्दर भाव!

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  3. खुद का अस्तित्व हो .. उसके लिए कठिन परिश्रम ओर खुद के बदलाव की जरूरत होती है ... ओर खुद ही लाना होता है ये बदलाव ... वर्ना सब बातें ही हैं ...

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