Showing posts with label कर्म. Show all posts
Showing posts with label कर्म. Show all posts

Saturday, 21 September 2013

मेरे उद्दगार


मै कोई पथ प्रदर्शक
 या तारणहार नहीं ,
उठती लहरों को मैं बांधू 
ऐसा खेवनहार नहीं। 
मेरे बातों में न कोई
 भविष्य की पुकार सुने ,
मेरे उद्दगारों में अपने 
सपनों के अल्फाज चुने। 
मै तो हूँ बस पथिक राह का 
कदम बढ़ता चलता हूँ ,
कंटक मार्ग या पुष्प शुषोभित 
कर्म निभाता बढ़ता हूँ।  
धरा धुल सा बेशक हूँ  पर
इतना भी कमजोर नहीं ,
ठोकर खा मै सर चढ़ जाऊ
 इन जोशो में नहीं कमी ,
अंगारे  जब राह में पाया 
दिल बेशक कुछ शुष्क हुआ 
हिमवान सा धीरज धर मन 
डगर शीतल अनुकूल किया।
मैं चाहूँ जिस राह से गुजरू 
वहां न ही कोई शूल रहे 
आने वाले पथिक न अटके 
और पीड़ा से दूर रहे। 
 हो सकती है भूल ये संभव 
   राह अगर मै  भटक गया , 
मुमकिन है दिग्भ्रमित होकर 
कही बीच डगर में अटक गया। 
कोशिश होगी अपनी दृष्टि 
खुद अपने में लीन करू ,
सत्य पुंज जो राह दिखा दे 
खुद को यूँ तल्लीन करूँ। 

Saturday, 31 August 2013

अस्तित्व


कुछ शेष रह जाते यहाँ
यादो की परछाई में
कुछ के निशां भी नहीं होते  
बह जाते है वक्त की पुरवाई में। 
किसकी किस्मत क्या  है
ये तो बस बहाना है,
गुजरे कर्मो को इस लिबास से
ढकने का रिवाज पुराना है। 
खुद में रहकर ही ,
खुद के लिए जो  गुजर जाते है ,
उन मजारो पर देखो जाकर
वहाँ घास-फूसों का आशियाना है। 
अपने आप को छोड़कर जो
औरों के लिए दर्द  लेते है 
अपनी पलकों के नींद किसी और को देते है
जिनका हाथ किसी गैर का सहारा है 
कंधो पे भार खुद का नहीं 
अरमानों का बोझ कई का संभाला है 
जो आवाज है कई 
हकलाती जुवानों का 
जिनके कानों में गूंजती है टीस 
किसी के कराहने का। 
उनके अस्तित्व ढूंढे नहीं जाते
वो सोते है गहरी नींद में
और लोग रोज उन्हें जगाने वहाँ आते 
झुके हाथों से नमन उन्हें करते है 
तुम हो साथ मेरे बस ऐसा कहते है। । 
इन बातों को शब्दों में गढ़ना कितना आसान  है ,
लगता नहीं कोई इससे अंजान है , 
हम उनसे अलग नहीं कोई 
किन्तु सोच शायद, कभी कर्म में बदल जायेगे 
कोई अस्तित्व हम भी गढ़ जायेंगे। ।