आप सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामना
अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं । अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥ "कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्यनही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं ।" — शुक्राचार्य
अबकि आकर मुरली मनोहर कुछ ऐसा चक्र चला देना
ReplyDeleteशिश अलग अज्ञान का कर पुनः ज्ञान रवि फैला देना।
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इस प्रार्थना में हमारा भी स्वर शामिल है!
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें!
ReplyDeleteकर्तव्य का कोई मोल नहीं मोह ने सबको लीला है
ReplyDeleteगीता ज्ञान की बाते सिर्फ टकराती मंदिर शिला है ...
ज्ञान कौन सुनना चाहता है अब ... स्वार्थ हावी है ...
सार्थक प्रस्तुति है ... कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई ...
आपको भी जन्माष्टमी की बधाई...
ReplyDeleteजन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाइयाँ और इस रचना के लिए भी.
ReplyDeleteजी हाँ गीता ज्ञान की बाते अब सिर्फ उपदेश बन कर रह गई है । बहुत सुंदर । मेरी ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।
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