उन्मुक्त गगन
शीतल पवन
निर्मल जल
विहंग दल
रेशमी किरण
भौरों का गण
सतरंगी वाण
बूंदों की गान
ऋतुओ से मेल
झिंगुड़ का खेल
टर्र-टर्र का राग
आँगन में प्रयाग
चन्दन से धुल
मिल पराग ऑ फूल
उठता गुबार
गोधुली में अपार
कचड़ो का हवन
सर्द सुबहो में संग
सकल गाँव का प्यार
जो पूरा परिवार
है खो गए सभी
जब से छूटा वो जमीं। ।
क़दमों के चाल
संग जीवन के ताल
उदेश्य विहीन
नहीं कुछ तर्क अधीन
पथ पर सतत
यात्रा में रत
तन बसे कहीं
पर मन वहीं
डूबा प्रगाढ
मिट्टी संग याद
ए काश कही
हो जाये यही
घूमे जो काल
विपरीत कर चाल
फिर जियूं वहाँ
याद बसी जहाँ। ।