रुपया आजकल रोज गिर रहा है। कुछ चैनल इसपर विशेष चिंतित है और कुछ डॉलर के मुकाबले भाव बताकर चुप हो जाते है। अब तक के इतिहास में ऐसा नही हुआ है। फिर कोई भी इतिहास बनाने वाली घटना को ऐसे नकारत्मक भाव मे प्रस्तुत करना इनकी मानसिकता को दर्शाता है। रोज-रोज ऐसे थॉडे ही न होता है। हम तो इसी बात पर खुश है कि ईन ऐतिहासिक घटनाक्रम के गवाह हम भी बने है। खैर....।। साथ ही साथ ये भी सुनने में आया है... हो सकता है अफवाह हो ....कि जिन्होंने रुपये के चाल पर विशेष नजर रखा है उनके ऊपर इनकम टैक्स वालो की भी विशेष नजर है।
मूझे लग रहा है कि आर्थिक नीतियों के सूत्रधार ने कुछ नए सूत्र खोजे है। भले अब तक कुछ लोग इसे महज कागज का एक टुकड़ा न मान इसके अवमूल्यन को राष्ट्र का अवमूल्यन मानते रहे। लेकिन वो विचार भी भला कोई विचार है जो कि स्थिर और दृढ़ रहे। मांग में तरलता का सिद्धांत अर्थशास्त्र में काफी प्रमुख है और जब सबकुछ अर्थशास्त्र से प्रेरित है तो विचारो पर उसका प्रभाव तो स्वभाविक है। इसलिए अब लुढ़कते रुपये में शायद नया दर्शन हो।
जिस प्रकार से काला धन जमा करने में सभी प्रेरित थे और नॉटबंदी के बाद भी ज्यादातर बच निकले, तो फिर ये रुपये गिर रहे है या जानबूझकर गिराया जा रहा है ...कुछ कहना मुश्किल है। बेशक आप गिरते रुपये को देख ये धारणा बना रहे हो कि सरकार रुपये को संभाल नही पा रही है। लेकिन मुझे लगता है कि अब कुछ नए नीति का सूत्रपात हुआ है कि जब तक आपका रुपये से मोह भंग नही होता तब तक इसका लुढ़कना जारी रहेगा।
आपको दुखी और निराश होने की जरूरत नहीं है । कुछ डॉलर पॉकेट में आ जाये फिर देखिए कैसे लुढ़कते रुपये को देख दिल खुश होता है। वैसे भी रुपये को हाथ का मैल ही कहते रहे है और इस मैल को रगड़ रगड़ कर साफ कर ले नही तो भावी योजना में अभी तो सिर्फ रुपया लुढ़क रहा है। हो सकता है कही लुढ़कते- लुढ़कते गायब ही न हो जाय...क्या पता..?