Tuesday, 24 March 2020

कोरोना डायरी

हमे कभी-कभी बड़ा कोफ्त होता है। हमे किसी ऐतिहासिक घटनाक्रम के साक्षी होने का मौका अब तक नही दिखा। लेकिन अब एक मौका आखिर कोरोना ने दे ही दिया। गंभीर तो इसके प्रति हम पहले ही दिन से थे, लेकिन आने वाला कल इतना उथल-पुथल वाला होने जा रहा है, इसका अंदाज न था।
           इससे पहले भी कई बीमारी नाम बदल-बदल कर आते रहे है। कभी सार्स, तो कभी मार्स, कभी बर्ड फ्लू उड़ने लगा तो कभी स्वाइन फ्लू छाया, कभी एंथ्रेक्स से घबराए रहे।
         लेकिन ये कोरोना ने तो वाकई घटनाक्रम में ऐतिहासिक मोड़ ले आया। कोविड-19 अब इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गया। जब देश सबसे लंबे लॉकडाउन के दौर से गुजरेगा।
         ज्यादा दुखी होने की कोई जरूरत नही है।अब इसके अलावा कोई चारा भी नही है।"सटले तो गइले" कई दिनों से सोशल मीडिया पर सचेत किया जा रहा था। लेकिन आप हम है कि मानते नही। फिर ये चेताया कि हॉस्पिटल में इतने बेड नही है कि आपको रखना संभव हो और फ़ोटो फ्रेम किसी को भला क्यों कबूल हो फिर घर के अलावा और कोई दूसरा उपाय अब तक किसी एक्सपर्ट ने बताया नही।
     अतः घर की चहारदीवारी ही आपकी लक्ष्मणरेखा है। जाने कब से सभी भागने में व्यस्त थे। थोड़ा मौका मिला है सुस्ता ले और घर मे बैठे-बैठे कहानी बुनिये। ताकि आने वाले समय मे आप भी कहानी सुना सके कि  एक बार जब "कोरोना विष राक्षस" के महापराक्रमी पुत्र "उन्निसानन्द कोविड" को आपने घर मे बैठे-बैठे ही परास्त कर दिया। इस ऐतिहासिक घटना क्रम में आपके योगदान को आने वाली पीढ़ी सराहेगी और जब आप से बार-बार ये पूछेगी की बताइए न आखिर बिना अस्त्र और शस्त्र के आपने "उन्निसानन्द कोविड" को कैसे परास्त कर दिया?
         और फिर आप सिर्फ बिना कुछ कहे मुस्कुरायेंगे। भला क्या कहेंगे ..जब मानव मंगल ग्रह पर घर बनाने की बात सोच रहा था, तब भी हम सब के पास "उन्निसानन्द कोविड" को हराने के लिए घर मे बैठने के बिना और कोई कारगर अस्त्र नही था।

Tuesday, 3 March 2020

दिल्ली दंगा


               दिल्ली की हवा तो पहले से खराब है, इसकी जानकारी तो हमे थी। किन्तु हवा इतनी जहरीली हो गई है इसका एहसास तो आने के बाद हुआ।  क्रंदन और वंदन का दौर अब भी अनवरत है। धार्मिक कुनिष्ठा के साथ सहनशीलता की अतिरेक प्रदर्शन तो हो ही गया। फिर भी यथोचित मानवीय गुणों को तो तभी ही सहेजा जा सकता है।जब वर्तमान आपका सुरक्षित हो।असुरक्षा के भाव धारण कर कब तक इंसानी जज्बात और मानवीय संवेदना को आप वैसे ही सहेज पाते है,कहना कठिन है। 
                एक कानून के ऊपर स्वभाविक रूप से बौद्धिक या अनपढ़ जो भी हो स्व-पंथ के एक चादर में आकर विरोध का स्वर दे, किन्तु लोकतांत्रिक मूल्यों से कोई वास्ता न रखे। तो ऐसे भीड़ को उन्मादी और वहशी में तब्दील करने में विशेष परिश्रम नही करना पड़ता है।वैसे स्थिति में तो और भी आसान है जब आप पहले से ही किसी को अपना दुश्मन मान बैठे है।  
              जब वर्तमान अभिव्यक्ति की आजादी के हर्ष से अतिरेक होकर बढ़ रहे है, तो शायद वो बहुत कुछ बाहरी कारको से प्रभावित हो परिमार्जित होकर प्रदर्शित हो रहा है। ध्रुवीय विचारो का ऐसा परिवर्धन अगर होगा तो फिर उसका परिणाम दिल्ली दंगो के रूप में ही निकल कर आएगा।वर्तमान में एक पक्षीय उभार को देखने के लिए भूत के  ससंकित भाव भी ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में उतने ही समकालीन है।क्योंकि विभाजन एक ऐतिहासिक सत्य है।अतः बहुसंख्यक भाव को भी उसी मानवीय मनोविज्ञान के परिधि में ही तलाशने की भी आवश्यकता है। 
                 कानून और व्यवस्था उस मानवीय पहलू और भाव का भाग है, जहाँ बहुसंख्यक नागरिक उस पर विश्वास रखता है।  फिर यह भी विचारे की बदलते भूगोलीय और भू-खंडीय परिपेक्ष्य में यह भाव सास्वत है या फिर इसके बदलने की स्वभाविक वृति है।इसके नए उभार और आयाम ऐसे ही बदलते रहे तो व्यवस्था दिल्ली की तरह मूक दर्शक बने रह जाएंगे। 
              तमाम विरोधभास और अन्य के प्रति अपनी निष्ठा के बीच इतनी गुंजाइस अवश्य रहे की कम से कम इंसान कैसे इंसान बना रह सके  इन प्रश्नों पर भी विचार करने के अवसर बचा रहे।

Friday, 28 February 2020

क्या जला है..?

हर तरफ धुंआ और आग है,
जल रहा क्या ?

शायद इंसानी जज्बात और इंसानियत
मासूम बच्चों की खिलखिलाहट।।

नही सिर्फ घर और समान नही जलते
फिर जल रहा क्या?

वो होली के गुलाल राख होते है
और ईद की सेवइयां भी झुलस रही
गंगा में जलती चिता की राखे है
तो जमुना में रक्त के छीटें।।

नही सिर्फ दुकान और आशियाने नही जलते
तो फिर जला क्या है?

आपसी विश्वास की डोर में धुएँ है
इंसानी एहसास में लपटे है
हम कौन और तुम कौन
गैर होने के तपन ही दहके है।।

नही सिर्फ ये शहर नही जलते
फिर जला क्या है ?

भविष्य के दिये जले है
कई घरों के चिरागे जले है
साथ रहने के भरोसे जले है
बच्चों के सर से पिता के साये जले है
ये जलन की ऊष्मता
कभी भविष्य में कम होगी या नही
कई दिलो में ये भरोसे भी जली है।।

Thursday, 27 February 2020

दिल्ली में दंगा


       दिल्ली आना अप्रत्याशित था और यहाँ आने के बाद जो हुआ वो भी अप्रत्याशित है।दिल्ली को देश का दिल कहते है और ऐसे लगा जैसे दिल ने धड़कना बंद कर दिया हो।जिनसे सीपीआर की उम्मीदें लगी वो हाथ पत्थरो और लाठी से खेलते रहे और जिन्हें ऑपरेशन की जिम्मेदारी थी वो उनके पास साजो सामान नही था। 
 जब आप अपने घर से बाहर के हालात का जायजा टी वी पर लेने की कोशिश में रहते है।तो आप अंदाज लगा सकते है कि भय का आवरण  किदर लिपट गया होगा। आसमान में उठते काले बादल की गुबार जब बंद खिड़की की सुराख से देखने का प्रयास होता है तो सांस की धड़कन की आवाज भी आपको दहशत से भरने के लिए काफी है। आप अंदाज लगा सकते कि दंगा से पसरी हुई सन्नाटा अंदर तक कितनी चित्तकार करती होगी। यह उस घर मे जाकर देखा जा सकता है जिसमे कोई इस भीड़ का शिकार बन गया हो। 

       नफरत के आग से फैली चिंगारी उन्मादी हवा में तैर कर कुछ भी जला सकती है यह प्रत्यक्ष दिख रहा था। भविष्य को सुरक्षित करने को निकले भीड़ में कितनो का वर्तमान छिन गया कहना मुश्किल है।        कराहती दिल्ली का ये भाग अब जैसे-तैसे लंगड़ाते हुए राहों पर चलने लगा । लेकिन हर दंगा की तरह कुछ चेहरे इन राहों पर से सदा के लिए खो गए होंगे। इन गलियों से आ रही जलने की बदबू कब तक वीभत्स यादों की जख्मो को यहां के लोगो के जेहन में बसा के रखेगा कहना मुश्किल है।

     बशीर बद्र का ये शेर ऐसा ही बयां करता है-
       लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में 
      तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में ।।

Wednesday, 19 February 2020

दौरा...एक राष्ट्राध्यक्ष का

सभी शोर मचाने में लगे है। न भारत कि ऐतिहासिक गौरव का मन मे कोई भान है और न ही अपनी सदियों पुरानी "अथिति देवो  भव" की आदर्श को अपने स्मृति में सहेज कर रखा है।जब दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र से मिलता है तो स्वागत संभवतः ऐसा ही होता है। पैसे आते जाते है लेकिन ऐसे-ऐसे राष्ट्राध्यक्ष रोज-रोज कोई थोड़े ही देश मे पधारते है। जो उनके लिए बजट की चिंता की जाय। ये सिर्फ नई दीवार की तर्कसंगतता को ढूंढने में लगे है। जबकि हमे मालूम है वो दुनिया का सबसे विकसित और शक्तिशाली देश है।
         जब ओसामा को पाकिस्तान उसकी नजरो से छिपा नही सका तो बाकी चीजे तो वो खुद जान जाएगा। वो बेशक जान जाए लेकिन हमें क्या दिखाना है ,इसका तो पता हमे होना चाहिए। फिर जो नही दिखाना चाहते उसके लिए तो दीवार खड़ी करनी ही होगी।
           जब देश के अंदर बिना ईट के ही कितने दीवार खड़े है, गिनती करना मुश्किल है।फिर एक ईंट की दीवार खड़ी हो गई तो क्या फर्क पड़ता है।
          स्वागत के लिये राह पर पलके बिछा कर रखे। अनावश्यक भैहे को तान उठती दीवारों पर नजर न डाले। आंखों में खराबी आने को संभावना हो सकती है।।