Sunday 16 June 2013

वक्त की बात


बिहार की राजनीती पर चंद पंक्तिया ........

न हमको है फायदा न उनको कोई लाभ 
फिर क्यों चले हम यु साथ साथ।।

बिहार में भले टूटी है तारे 
सभी को दिखाई देती है दरारे।। 

मगर हमारी मंजिल तो दिल्ली है यारो 
दिवालो पे लिखे इबारत खंगालो।। 

कर्म ही धर्म है सब कहते रहे है 
सेक्युलर का खेल यु ही चलते रहे है।।

अगर ये पासा अभी हम न फेके 
वो बैठे ताक में हमें नीचे घसीटे।।

इन बातो को दिल पर न रखना सदा 
वक्त को आने दो हम दिखाएँगे वफ़ा।।

कुछ दूर अलग अलग होंगी राहे 
कुछ तुम जुटालो कुछ हम बनाले।। 

फिर ये दरारे खुद मिट चलेगी 
अगर दिल्ली की गद्दी एन डी ए को मिलेगी।।

राजनीती में ये सब चलता रहा है 
वक्त की बाते है सब घटता रहा है।।


Friday 14 June 2013

आज का पल


इसी दौड़ - दौड़  के जीने का मजा है 

दौड़ने  को  न मिले मौका वो जिन्दगी सजा है ।।


जियो मस्ती में 

सीरियल को देख  के समय ना गबाओ 

कुछ समय माँ के चरणों में भी  बिताओ।।

रेत पे नंगे पाँव टहलने वाले अब भी टहलते है 

जो चैनल् में है उलझे उनका मन कहा बहलते है।।

रखने  वाले इन्टरनैट के साथ पड़ोस का भी हल रखते है 

दोस्ती निभाना जानो तो ऐसे तार  भी मिलते है।।


जिन्हें प्रकृति से प्यार है उन्हें सब याद है  

डूबते और उगते सूरज बीती नहीं ,आज की ही बात है।।

कमबख्त इस दुनिया में अभी भी बहुत मजा है 

आप लूटना न जानो तो ये आपकी सजा है।।  


पल-पल को गुजरे वक्त से जोड़ना बेमानी है 

हर पल को जो न जिए उसकी नादानी है।।


कल गुजर गए आज बस आज का ही  राज है,

जो जिए इन पलो को  वही असली महाराज है।।


Sunday 28 April 2013

मर्दित होते मान बचाये

भ्रमित मन पग पग पर है भ्रम ,
हवा दूषित आचार में संक्रमण ,
क्या घूम चला विलोमित पथ पर 
अब संस्कार का क्रमिक संवर्धन ?

पशु जनित संस्कार कुपोषित ,
सामाजिक द्व्दन्द बिभाजित ,
कानूनों की पतली चादर 
कटी फटी पैबंद सुशोभित।। 
आओ अपना हाथ बढाये 

हाहाकार मचे अब तब ही ,
नर पिशाच जब प्यास बुझाये। 
काली दर काली हो कागद ,
और नक्कारे में भोपू छाये।। 

बंजर चित की बढती माया 
काम लोलुप निर्लज्ज भ्रम साया, 
अविकारो का विशद विमंथन 
गरल मथ रहे गरल आचमन ।।

भेदन सशत्र अविकार काट हो 
शल्य शुनिश्चित चाहे अपना हाथ हो। 
हाथ बड़े अब रुक न पाए 
मर्दित होते मान बचाये ।।  

Sunday 10 February 2013

क्या करे अब वक्त नहीं पास है

कल जो बीत गए आज न कुछ हाथ है ,
ढूंड रहा परछाई पर रोशनी नहीं साथ है।
मजनुओ को जो चाहा उतार दे दरख़्त पर,
चल परा पानी सा अब स्याही सुखी दवात  है।
यही कहते अब न कोई आस है, 
क्या करे अब वक्त नहीं पास  है।।

चेहरे के  धुल  पोछकर देखना जो चाहा है 
पाया की अब आयना खुद को दरकाया है।
उनकी बाते  काँटों से चुभन देती थी
  सुनना चाहा तो हलक न कुछ बुदबुदाया है।
यही कहते अब न कोई आस है ,
क्या करे अब वक्त नहीं पास  है।।

कदम हर  कदम अब खुद से अंजान है,
मुड़ के जो देखा तो न कोई पहचान है। 
साथ भीर में चाहा तलाशे  किसी को,
न मिला सब को किसी और की प्यास  है।
यही कहते अब न कोई आस है, 
क्या करे अब वक्त नहीं पास  है।।

बहती हुई धार के मौजों  को पहचान, 
हवा के झोको से न रह अंजान, 
कोसते हुए जिन्दगी में भी क्या रखा है ?
सूखे पतों को  क्या वर्षा से आसरा  है ?
यही न कहते रहो अब न कोई आस है, 
क्या करे अब वक्त नहीं पास  है।

Saturday 9 February 2013

विचार मोदी परिवर्तित है



                 बहुत दिनों के बाद चुनावी परिद्रिश्य  से बाहर आकर किसी राजनेता का भाषन सुना। दिनाक 06.02.2013 को श्री राम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स में श्री नरेन्द्र मोदी का ब्याख्यान काफी मायनों में अलग है।सामान्तया मोदी उन गिने हुए नेताओ में है जिनकी किसी भी कार्य को राष्ट्रीय मीडिया अपने सोच के अनुसार विश्लेषन करता है।मोदी एक दायरे में बांध दिए गए है और उनके किसी भी कम को एक विशेष चश्मे से देखा जाता है।मोदी अब व्यक्ति विशेष न होकर रूपक स्वरुप हो चुके है ,जिनके किसी भी बक्तब्य को उनका अपने इमेज की बदलने की कोशिश ही बतया जाता है।कोई नेता चार बार चुनने के बाद अपने इमेज को लेकर ज्यादा ही आश्वस्त होगा भला उसे क्यों बदलना चाहे। उनके विचारो का विश्लेषन बर्तमान या भविष्य को ध्यान में न रखकर हमेसा से भूतकाल में उनके विशेष योगदान के सन्दर्भ में  ही ज्यादातर विश्लेषक करने की कोसिश  करते है।

                       ये एक अजीब मानसिकता है की किसी नए विचार को समय के अनुसार बदलाब के रूप में उसका स्वागत न  कर हमेशा  से अपने सोच के रेखा अंतर्गत ही रहना चाहते है।किन्तु ये समझते नहीं की जनता की भी अपनी एक सोच और समझ होती है।जहा किताबी अवधारणा से भी परे की जीवन की यथार्त अब्धारना होती है।जिसे की मोदी ने अपने संबोधन में छात्रो के सम्मुख  रखा तथा तालियों की गरगारहट  युवा की स्वरोक्ति को दर्शाता है।समय के साथ यथार्त परिवर्तन को देश के सामने एक मौका के रूप में देखना चाहिए सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना नहीं होनी चाहिए।इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता की मोदी के साशन कल में गुजरात की प्रगति सभी के लिए विचारनीय तथा अनुसरनीय है।कानून अपना कार्य करता है ओर अगर मोदी के खिलाफ कोई आरोप बनता है तो अवस्य ही विधि समत फैसला उनको स्वीकारना होगा।किन्तु तब तक उनके  साशन में हुए  सर्वांगीं विकास की अवधारणा जिनको की उन्होंने छात्रो के सामने रखा  उसे  अपने-आप को  ब्रांड रूप में परिवर्तन करने की कोशिश  न मानकर हमें उन्हें एक कारगर शासक मानाने से गुरेज नहीं करना चाहिए। अगर ऐसा होता तो बाल्मीकि कभी रामायण नहीं लिख पाते।साथ साथ यह भी विचार करने योग्य है की जनता से ज्यादा येपड़े लिखे विश्लेषक,चिन्तक  धर्म ,जात -पात को कही विकास के ऊपर तर्हिज तो नहीं दे रहे है। अगर किसी गलती के लिए दंड का प्रावधान है तो अच्छे  कार्यो की जमकर सराहना की जानी चाहिए।