बिहार की राजनीती पर चंद पंक्तिया ........
न हमको है फायदा न उनको कोई लाभ
फिर क्यों चले हम यु साथ साथ।।
बिहार में भले टूटी है तारे
सभी को दिखाई देती है दरारे।।
मगर हमारी मंजिल तो दिल्ली है यारो
दिवालो पे लिखे इबारत खंगालो।।
कर्म ही धर्म है सब कहते रहे है
सेक्युलर का खेल यु ही चलते रहे है।।
अगर ये पासा अभी हम न फेके
वो बैठे ताक में हमें नीचे घसीटे।।
इन बातो को दिल पर न रखना सदा
वक्त को आने दो हम दिखाएँगे वफ़ा।।
कुछ दूर अलग अलग होंगी राहे
कुछ तुम जुटालो कुछ हम बनाले।।
फिर ये दरारे खुद मिट चलेगी
अगर दिल्ली की गद्दी एन डी ए को मिलेगी।।
राजनीती में ये सब चलता रहा है
वक्त की बाते है सब घटता रहा है।।
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