Sunday 16 June 2013

मंजिल की निशां नहीं बस दिल में आशाये है

क्या पाना हमें जिन राहों पर कदम बढते आये है? 
मंजिल की निशां नहीं बस दिल में आशाये है। 
न दीखता कोई दूर तलक मेरे आगे ,
फिर भी ख्वाब हमने सजाये है।
ये पत्तिया ये दबे दूब सारे ,
कर तो रहे कुछ ये भी इशारे। 
इन्ही पगडंडियो पर कोई तो है गुजरा 
जिनको इन्होंने दिए कुछ सहारे। 
इन्हें देख कर दिल में  रौशनी झिलमिलाये है। 
मंजिल की निशां नहीं बस दिल में आशाये है।।

चले हम कहा से अब कहा जा रहे है ?
उलझते सुलगते बस बड़े जा रहे है।
जिनको सुना मंजील अब मिल गई है, 
इन्ही राहो पे वो भी टकरा रहे है।
दिखा दूर झिलमिल वो मिलता किनारा 
पास आने पे खुद को  वही पा रहे है। 
पर चलने की चाहत नहीं डगमगाए है। 
मंजिल की निशां नहीं बस दिल में आशाये है।। 

ये जीवन है पथ, पथिक हम चले है, 
क्या पाना है मुझको ये द्वन्द लिए है। 
कर्तव्य पथ पर तो बढना ही होगा ,
पर पाना है क्या यहाँ कौन कहेगा ?
कदम दर कदम ख्वाहिश गहराता जाता 
किसी मोड़ पर काश कोई ये बताता।
है उम्मीद पे दुनिया बिश्वास गहराए है।
मंजिल की निशां नहीं बस दिल में आशाये है।। 

1 comment: