Thursday, 20 September 2012

ये क्या जो गर्दिसे दीदार है।

वो  जो बैठे आसमां में, हसरतो से देख रहे,
ये क्या जो गर्दिसे दीदार है ?

बादियो से सिसकिया गूंजती है,
और उनको संगीत-उल्फ़ते आभास  है।
पेट बांधे घुटनों के बल  परे है
वो  समझते कसरतो का ये  खेल है।
वो जो  बैठे आसमां में, हसरतो से देख रहे
ये क्या जो गर्दिसे दीदार है ?

है गले तक बारिसो की सैलाब ये,
उनको मंजर सोंखिया ये झील की गहराई है।
चश्मे-शाही की बदलते सूरते भी,
हलक की प्यास बुझाते रंगीन ये जाम है।
वो जो बैठे असमा में, हसरतो से देख रहे
ये क्या जो गर्दिसे दीदार है ?

हर गली में भय का साया, निःशब्दता छाया हुआ,
वो समझते नींद के आगोश में चैन से  खोये हुए है।
रहनुमा जो मुल्क की तक़दीर पर खुद  भिर रहे ,
अमन का पैगाम भी बाटते वो चल रहे।
वो जो बैठे असमाँ में , हसरतो से देख रहे
ये क्या जो गर्दिसे दीदार है ?

कालीखो से अब यहाँ, है किसी को भय नहीं,
दूर तलक फैली हुई जो कोयले की राख है।
मुल्क की मजहुर्रियत में, मुर्दान्गिया सी छाई है 
है हलक जो खोलते भी, उनकी ही परछाई है।
वो जो  बैठे असमाँ में, हसरतो से देख रहे
ये क्या जो गर्दिसे दीदार है ?

क्या कफ़न था हमने बांधा,ऐसा हो मुल्के-वतन,
उल्फ़ते-शरफरोसों की, ये क्या इनाम है?
गोरो की उस गर्दिशी में भी, ना थी ये वीरानिया,
लुट लो मिलके चमन को,अच्छा ये अंजाम है।
वो जो बैठे असमाँ  में, हसरतो से देख रहे
ये क्या जो गर्दिसे दीदार है ?

1 comment:

  1. Bahut badhiya,,Jabardast hai...

    क्या कफ़न था हमने बांधा,ऐसा हो मुल्के-वतन,
    उल्फ़ते-शरफरोसों की, ये क्या इनाम है?
    गोरो की उस गर्दिशी में भी, ना थी ये वीरानिया,
    लुट लो मिलके चमन को,अच्छा ये अंजाम है।
    वो जो बैठे असमाँ में, हसरतो से देख रहे
    ये क्या जो गर्दिसे दीदार है ?

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