Saturday, 8 September 2012

अपने ही देश में बेगाने लगे है।

अपने ही देश में बेगाने लगे है।

भाषा और बोली में देश खो सा गया है ,
जनता तो भोली है सो सा गया है।
देश के रहनुमा संसद में भीरते है ,
मर्यादा है तोरी अन्ना से कहते है।
हर चेहरे में संशय छाने लगे है।
अपने ही देश में बेगाने लगे है।।

 गुजरात का गौरव छाया हुआ है ,
 मराठा मानुस बौखलाया हुआ है,
दीदी को नैनो की चिंता सताई ,
कश्मीर तो कब से बेगाना परा है।
देश कहा सब कहने लगे है,
अपने ही देश में बेगाने लगे है।।

कब तक सोओगे अब तो जागो ,
कोयले की तपिस को पहचानो ,
पार्टी और मजहब की बंदिश तोरो ,
दिल के तार सिर्फ देश से जोरो।
 दीवारों पे नज्मे उभरने लगे है,
अपने ही देश में बेगाने लगे है।।

3 comments:

  1. मेरे बारे में कोई राय न कायम करना .

    एक दिन मेरा वक़्त बदलेगा .तुम्हारी राय बदलेगी!!!!!



    मैं लोगो से मुलाकातों का लम्हा याद रखता हूँ,

    बाते भूल भी जाऊ पर लहजा याद रखता हूँ!

    थोडा हटके चलता हूँ जमाने की रिवायत से कि

    जिनपे मैं बोझ डालु वो कन्धा याद रखता हूँ !



    कोई मुझे याद करे न करे वो बात अलग हैं वरना मेरे वजूद को भुला पाना इतना आसान नहीं!



    अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे;

    जिसकी जैसी सोच थी उसने उतना ही पहचाना मुझे!!!!

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  2. पहचान छुपाना इतना आसन नहीं
    ग्रहण लगी है लेकिन सूरज से अनजान हम नहीं।
    दुनिया की रवायत तो उगते सूरज को सलाम से है
    आप शीतल चाँद की धारा हो इससे हम अनजान नहीं।

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    1. दिल को छू लेने वाली बात कही है आपने ।

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