ब्यग्र मन कल की फिकर में
आज को ही भूल गया,
उज्वलित प्रकाश है चहु ओर फिर भी
सांध्य तिमिर ने घर किया।।
धड़क रहा दिल बार -बार पर
वो स्वर संगीत न सुन सका
कब तलक छेड़ेगी सरगम
फिक्र में ही बड़ता चला।।
है बड़ी दिल में तम्मान्ना
बौराई बादल बरसे यहाँ,
जब चली रिमझिम फुहारे
सर पे पहरा दूंडता फिर रहा।।
स्वप्न में पाने की चाहत
है नहीं किसके दिल में
पर नींद में भी रुक न पाया
पहली किरण की चाहत में।।
अर्थ पाने की चाहत,
खुशियो की जो मंजिले,
अर्थ का अनर्थ करते
जब सब कुछ इससे तौलते ।।
कल तो कल था , आयेगा कल,
कल को किसने देखा है।
आज की ही दिन है बस,
जो जिन्दगी की रेखा है।
फितरते अनजाने पल की
है मचलती धार सी,
तोड़ दे बंधन कब तट का
और बह जाये जिन्दगी।।
आज खुशियों का झरना
आज ही गिर कर संभालना
आज ही बस दुख प्लावित
आज ही अमृत का बहना
आज ही दुश्मनों का वार
आज ही दोस्तों का ढाल
आज का रज ही चन्दन है
आज का सच ही बन्दन है ।।
आज में जीना सीख लिया तो समझो आधा सफ़र तय हो गया ...सकारात्मक सोच लिए अच्छी अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत सही विचार और सकारात्मकता को व्यक्त करती है आपकी ये कविता...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति।।।
शुक्रिया
Deleteवाह...बहुत सुन्दर......
ReplyDeleteमन को ऊर्जा से भरती रचना....
अनु
सकारात्मकता को व्यक्त करती है कविता
ReplyDelete