आज न जाने कैसे
दोनों के अहम्
आपस में टकरा गए।
निर्जीव दीवारें भी
इन कर्कश चीखों से
जैसे कुछ पल के लिए
थर्रा गए।
एक दूसरे के नज़रों में
अपनी पहचान खोने का गम था।
"मैं" और "तुम" यादकर
"हम" से मुक्त होने का द्वन्द था।
अब चहारदीवारी में
दो सजीव काया
निर्जीव मन से बंद थे।
बंद थी अब आवाजे
ख़ामोशी का राज था।
खूबसूरत कला चित्र भी
अब इन दीवारो पर भार था।
कुछ देर पहले निशा पल में
जो गलबहियां थी।
दो अजनबी अब पास-पास
युगों-युगों सी दूरियां थी।
बुनते टूटते सपने पर भी
कभी तर्जनी एकाकार थे।
समय के बिभिन्न थपेड़ो पर
मन में न कभी उद्विग्न विचार थे।
वर्षो साथ कदम का चाल जैसे
अचानक ठिठक गया।
मधुर चल रही संगीत को
श्मशानी नीरवता निगल गया।
टकराते अहम् है जब
मजबूत से रिश्ते दरक जाते है।
धूं -धूं कर दिल से उठते धुएं
कितने आशियाने जला जाते है। ।
दोनों के अहम्
आपस में टकरा गए।
निर्जीव दीवारें भी
इन कर्कश चीखों से
जैसे कुछ पल के लिए
थर्रा गए।
एक दूसरे के नज़रों में
अपनी पहचान खोने का गम था।
"मैं" और "तुम" यादकर
"हम" से मुक्त होने का द्वन्द था।
अब चहारदीवारी में
दो सजीव काया
निर्जीव मन से बंद थे।
बंद थी अब आवाजे
ख़ामोशी का राज था।
खूबसूरत कला चित्र भी
अब इन दीवारो पर भार था।
कुछ देर पहले निशा पल में
जो गलबहियां थी।
दो अजनबी अब पास-पास
युगों-युगों सी दूरियां थी।
बुनते टूटते सपने पर भी
कभी तर्जनी एकाकार थे।
समय के बिभिन्न थपेड़ो पर
मन में न कभी उद्विग्न विचार थे।
वर्षो साथ कदम का चाल जैसे
अचानक ठिठक गया।
मधुर चल रही संगीत को
श्मशानी नीरवता निगल गया।
टकराते अहम् है जब
मजबूत से रिश्ते दरक जाते है।
धूं -धूं कर दिल से उठते धुएं
कितने आशियाने जला जाते है। ।
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन सर डॉन ब्रैडमैन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआभार........
Deleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteकभी किसी रिश्ते में हावी ना होए यह....सुन्दर रचना.
ReplyDeleteधूं -धूं कर दिल से उठते धुएं
ReplyDeleteकितने आशियाने जला जाते है।
सच कहा..... बढिया..
अहम् ही टकराव की असली वजह है, कविता के माध्यम से सुन्दरता से मनोभावों को पकड़ा है . बधाई ..
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