Tuesday, 4 February 2014

परछाई

सर्द हवा ने 
आंतो को जमा दिया 
भूख कुछ  जकड़  गई ,
नीले-पीले डब्बे 
रंग-बिरंगी दुनिया से निकल कर 
अपने आत्मा से अलग 
ठुकराये जाने के दुःख से कोने में गड़ी 
सूखे टहनियों सी हाथ के साथ 
कई अंजान से एक जगह मिलाप 
धूं -धूं  धधकता है। 
सुंगन्धो से मन गदगद 
सर्द हवा आंतो को बस 
ऐसे ही जकड़ रखो की ये आवाज न दे । । 
जब सूरज जकड़े गएँ 
तो इनकी औकात क्या ?
पर ये काल चक्र 
हर समय काल बनकर ही घूमता ,
इन हवाओ में न जाने क्यों 
उष्णता है रह रह कर फूंकता। 
फिर छल दिया 
प्रकृति के रखवालों ने 
नीले -पीले डब्बे कि जगह 
भर दिया फूलों से 
हरी-भरी गलियारों ने । 
आंत अब जकड़न से बाहर 
भूख से बेताब है,
धुंध से बाहर हर कुछ 
नए रंग-लिप्सा की आवाज है। 
पर ,ओह बसंत, क्या रूप है तेरा 
कैसे जानूं मैं 
आँखों पर अब तक 
आंतो की भूख  ने 
अपना ही परछाई बिठा रखा है। । 

9 comments:

  1. सुंदर पंक्तियाँ
    बसंत पंचमी की शुभकामनाएं...

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर.... बसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं....

    ReplyDelete
  3. कुछ उलझे से भाव जो बेताब हैं परछाई से असल होने को ...

    ReplyDelete
  4. गहन भाव लिए रचना...
    बसंत पंचमी कि शुभकामनाएँ...
    माँ सरस्वती कि कृपा रहे...
    http://mauryareena.blogspot.in/
    :-)

    ReplyDelete
  5. बहुत गहन भाव, जब भूख व्याकुल करती हो कुछ भी अच्छा नहीं लगता |

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति...!
    बसंत पंचमी कि हार्दिक शुभकामनाएँ....
    RECENT POST-: बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है

    ReplyDelete
  7. पर ,ओह बसंत, क्या रूप है तेरा
    कैसे जानूं मैं
    आँखों पर अब तक
    आंतो की भूख ने
    अपना ही परछाई बिठा रखा है। ।
    ....बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

    ReplyDelete