जीवन
दोनों के पास है
एक है इससे क्षुब्ध
दूसरा है इससे मुग्ध
एक पर है भार बनकर बैठा
दूजा इसपर बैठकर है ऐंठा।
जीवन
दोनों के पास है,
एक ही सिक्के के,
दो पहलूँ कि तरह। ।
जीवन
एक महल में भी कराहता है
तो कहीं फूंस के छत के नीचे दुलारता है।
कोई अमानत मान इसे संभाल लेता
तो दूजा तक़दीर के नाम पर इसे झेलता।
जीवन
दोनों के पास है
एक ही मयखाने के
भरे हुए जाम और टूटे पैमाने की तरह। ।
जीवन
मुग्ध सिद्धार्थ जाने क्यों
हो गया इससे अतृप्त,
अतृप्त न जाने कितने
होना चाहते इसमें तृप्त।
जीवन
दोनों के पास है ,
एक ही नदी के
बहती धार और पास में पड़े रेत की तरह। ।
जीवन
शीतल बयार है यहाँ
वहाँ चैत की दोपहरी,
वो ठहरना चाहे कुछ पल
जबकि दूजा बीते ये घडी।
जीवन
दोनों के पास है ,
एक ही पेड़ के
खिले फूल और काँटों की तरह। ।
एक ही नाम के
कितने मायने है ,
बदरंग से रंगीन
अलग-अलग आयने है,
लेकिन जीवन अजीब है
बस गुजरती है जैसे घड़ी की टिक-टिक।
उसका किसी से
न कोई मोह न माया है ,
वो तो गतिमान है उसी राहों पर
जिसने उसे जैसा मन में सजाया है। ।
दोनों के पास है
एक है इससे क्षुब्ध
दूसरा है इससे मुग्ध
एक पर है भार बनकर बैठा
दूजा इसपर बैठकर है ऐंठा।
जीवन
दोनों के पास है,
एक ही सिक्के के,
दो पहलूँ कि तरह। ।
जीवन
एक महल में भी कराहता है
तो कहीं फूंस के छत के नीचे दुलारता है।
कोई अमानत मान इसे संभाल लेता
तो दूजा तक़दीर के नाम पर इसे झेलता।
जीवन
दोनों के पास है
एक ही मयखाने के
भरे हुए जाम और टूटे पैमाने की तरह। ।
जीवन
मुग्ध सिद्धार्थ जाने क्यों
हो गया इससे अतृप्त,
अतृप्त न जाने कितने
होना चाहते इसमें तृप्त।
जीवन
दोनों के पास है ,
एक ही नदी के
बहती धार और पास में पड़े रेत की तरह। ।
जीवन
शीतल बयार है यहाँ
वहाँ चैत की दोपहरी,
वो ठहरना चाहे कुछ पल
जबकि दूजा बीते ये घडी।
जीवन
दोनों के पास है ,
एक ही पेड़ के
खिले फूल और काँटों की तरह। ।
एक ही नाम के
कितने मायने है ,
बदरंग से रंगीन
अलग-अलग आयने है,
लेकिन जीवन अजीब है
बस गुजरती है जैसे घड़ी की टिक-टिक।
उसका किसी से
न कोई मोह न माया है ,
वो तो गतिमान है उसी राहों पर
जिसने उसे जैसा मन में सजाया है। ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (28-01-2014) को "मेरा हर लफ्ज़ मेरे नाम की तस्वीर हो जाए" (चर्चा मंच-1506) पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार ....
Deleteलाजबाब प्रस्तुति ......बधाई कुशल जी
Deleteभाव मय रचना ...
ReplyDeleteविरोधाभास के बिच भी पनपता हुआ जीवन | बहुत गहन भाव समेटे ये पोस्ट लाजवाब है |
ReplyDeleteउसका किसी से
ReplyDeleteन कोई मोह न माया है ,
वो तो गतिमान है उसी राहों पर
जिसने उसे जैसा मन में सजाया है। ।
...वाह...बहुत सुन्दर और सारगर्भित अभिव्यक्ति....
अपना अपना नज़रिया भी एक भी एक ही दृश्य को दो तरीके से देखता है.
ReplyDeleteजीवन जिस तरह से जियो
ReplyDeleteवैसे ही उसके सुख दुःख भोग पाएंगे...
बहुत ही बेहतरीन और सार्थक रचना...
http://mauryareena.blogspot.in/
sarthak post
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteबसंत पंचमी की शुभकामनाएं...