कर्म में लीन
पथ पर तल्लीन
रवि के चक्र से बस इतना समझा
दक्षिणायण से उत्तरायण में
प्रवेश कि बस है महत्ता। ।
ग्रहों के कुचक्र हमसे ओझल
जो उसे बाधित नहीं कर पाता
मास दर मास न विचलित हो
पुनः धरा में नव ऊर्जा का
तब संचार है कर पाता। ।
हम उस प्रयास को
भरपूर मान देते है
लोहड़ी ,खिचड़ी ,पोंगल मना
इस संक्रमण को
किसी न किसी रूप में सम्मान देते है। ।
बिंदु और जगहवार
उसकी पहचान करते है
बेवसी और ख़ामोशी से
कल्पित हाथ हर पल
जहाँ उठते और गिरते है।।
कि आज का ये दिन
पिछले मासों के कालिख भरी पसीनो को
आज का स्नान धो देगा
ये कटोरी में गिरते तिल के लड्डू
इस आह में ख़ुशी भर देगा। ।
चलो संक्रांति के इस संक्रमण को
इस विचार से मुक्त करे
हाथ उठे न कि उसमे
हम कुछ दान करे
सतत प्रयास हो जो मानव सम्मान करें। ।
(सभी को मकर संक्रांति कि हार्दिक शुभकामना )
बहुत अच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeleteनई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
गहन और सुन्दर
ReplyDeleteआपको भी मकर संक्रांति कि हार्दिक शुभकामना !!!
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteमकर संक्रांति की शुभकामनाएँ !!
गहन भाव लिए सुंदर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: कुसुम-काय कामिनी दृगों में,
सुन्दर रचना. मकर संक्रांति की शुभकामनायें.
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कुशल जी .. बहुत बढियां
ReplyDeleteसुंदर सन्देश , बधाई आपको !!
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