गर्म हवा जब मचलती है ,
सारे पन्ने फरफरा उठते है।
एक बार फिर लगता है कि
जिंदगी ने जैसे आवाज दी।
हम ढूंढते है ,खोजते है,
गुम साये को
आज में तलाशते है।
ये पन्नों कि फरफराहट
चींख सा लगता है।
दबे शिला में जैसे कोई घुँटता है।
अक्षरों कि कालिख ,
स्याह सा छा जाता है।
धुंधली तस्वीर
आँखों में कई उतर आता है।
कितने ही साँसों का ब्यौरा
बचपन कि किलकारी
यौवन का सपना
धड़कते दिल से इंतजार
शौहर का करना
बूढ़े नयनों में आभास
समर्थ कंधो की
जो छू ले नभ वैसे पंजों की।
जो धड़कते थे , जाने कैसे रुक गए
कारवां ख़ुशी के
बीच सफ़र में ही छूट गए ।
हर एक की कहानी
इन पन्नों में सिमटी है ,
एक नहीं अनेकों
रंग बिरंगे जिल्द में ये लिपटी है।
सागवान के मोटे फ्रेमों में
पारदर्शी शीशे के पीछे
किसी कि साफगोई,
या किसी चाटुकारिता कि किस्सागोई ,
न जाने कितनी अलमारियाँ
सजी-सजी सी पड़ी है।
प्रगति और विचारवानो के बीच
ड्राइंग रूम कि शोभा गढ़ी है।
किन्तु बीच -बीच में
न जाने कैसी हवा चलती है ,
इन आयोगों के रिपोर्ट में दबी
आत्मा कहर उठती है।
वो चीखतीं है ,चिल्लाती है ,
काश कुछ तो ऐसा करो
की इन पन्नों को
रंगने कि जरुरत न पड़े।
हम तो इन पन्नों में दबकर
जिसके कारण अब तक मर रहे ,
उन कारणों से कोई
अब न मरें। ।
सारे पन्ने फरफरा उठते है।
एक बार फिर लगता है कि
जिंदगी ने जैसे आवाज दी।
हम ढूंढते है ,खोजते है,
गुम साये को
आज में तलाशते है।
ये पन्नों कि फरफराहट
चींख सा लगता है।
दबे शिला में जैसे कोई घुँटता है।
अक्षरों कि कालिख ,
स्याह सा छा जाता है।
धुंधली तस्वीर
आँखों में कई उतर आता है।
कितने ही साँसों का ब्यौरा
बचपन कि किलकारी
यौवन का सपना
धड़कते दिल से इंतजार
शौहर का करना
बूढ़े नयनों में आभास
समर्थ कंधो की
जो छू ले नभ वैसे पंजों की।
जो धड़कते थे , जाने कैसे रुक गए
कारवां ख़ुशी के
बीच सफ़र में ही छूट गए ।
हर एक की कहानी
इन पन्नों में सिमटी है ,
एक नहीं अनेकों
रंग बिरंगे जिल्द में ये लिपटी है।
सागवान के मोटे फ्रेमों में
पारदर्शी शीशे के पीछे
किसी कि साफगोई,
या किसी चाटुकारिता कि किस्सागोई ,
न जाने कितनी अलमारियाँ
सजी-सजी सी पड़ी है।
प्रगति और विचारवानो के बीच
ड्राइंग रूम कि शोभा गढ़ी है।
किन्तु बीच -बीच में
न जाने कैसी हवा चलती है ,
इन आयोगों के रिपोर्ट में दबी
आत्मा कहर उठती है।
वो चीखतीं है ,चिल्लाती है ,
काश कुछ तो ऐसा करो
की इन पन्नों को
रंगने कि जरुरत न पड़े।
हम तो इन पन्नों में दबकर
जिसके कारण अब तक मर रहे ,
उन कारणों से कोई
अब न मरें। ।
बहुत भावनात्मक..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रभावी रचना...
ReplyDeleteभावनात्मक ,सुंदर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: कुसुम-काय कामिनी दृगों में,
हार्दिक आभार .....
ReplyDeleteबढियां है .. सुन्दर भाव प्रकटीकरण ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआप सभी लोगो का मैं अपने ब्लॉग पर स्वागत करता हूँ मैंने भी एक ब्लॉग बनाया है मैं चाहता हूँ आप सभी मेरा ब्लॉग पर एक बार आकर सुझाव अवश्य दें...
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