हर वर्ष जब दिन ये आता करते सब ये प्रण,
बदलेंगे हम देश का भाग्य देकर तन-मन-धन। ।
किन्तु इसके बाद फिर बिसरा देते सब भाव,
तब तो वर्षो बाद भी नहीं बहुत बदलाव। ।
चिंगारी साम्प्रदायिकता की जो सैतालिस में भड़की
आज तलक है बुझी कहाँ रह-रह कर है धधकी। ।
जात-पात के नाम पे करते बड़ी-बड़ी जाप
किन्तु फिर भी जाने क्यों नहीं मिटा ये श्राप। ।
गरीबी का हो उन्मूलन गाते सब ये गान
पर भूखो न जाने कितने त्याग दिये है प्राण। ।
इतने वर्षों बाद भी ऐसे है हालात
हो कोई भी, गण हम, चिंता की ये बात।।
चढ़ शूली जो सपना देखे आजादी के परवाने
बदले हम तस्वीरे जिससे व्यर्थ न जाए बलिदाने। ।
बीति ताहि बिसार के अब आगे कि सोंचे
विश्व गुरु हो पुनःप्रतिष्ठापित आओ कर्मों से इसे सींचे। ।
------------सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ---------------
विश्व गुरु हो पुनःप्रतिष्ठापित आओ कर्मों से इसे सींचे। ।
------------सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ---------------
गणतंत्र-दिवस की शुभ कामनाएं...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteओजस्वी रचना ... भावमय प्रस्तुति ...
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ...