धड़कने धड़कती है
पर कोई शोर नहीं होता
रेंगते से जमीं पर
जैसे पाँव के नीचे से
जीवन निकल रहा ।
यहाँ ये किसका वास है। ।
खुद से ही
रोज का संघर्ष
देखते है जिंदगी जीतती है
या हार जाये भी तो
जीत का है भान करता ।
ये किसका ऐसा अहसास है। ।
प्रारब्ध का बोध देती
तृष्कृत रेखा से पार
समतल धरा के ऊपर
अदृश्य कितनी गहरी ये खाई ।
किसके परिश्रम का ये सार है । ।
अनवरत ये चल रहा
बंटा हुआ ह्रदय कपाट
शुष्कता से अब तक सोखता
जाने कैसे है पनपा ये अतृप्त विचार।
कैसे बुझेगी क्षुधा किसका ये भार है। ।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर बहुत भावपूर्ण रचना ..
ReplyDeleteबहुत गहन और सुन्दर |
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDelete-प्रभावशाली
ReplyDeleteबहुत सुंदर---!!!!!
अति सुन्दर !
ReplyDeleteनई पोस्ट मेरी प्रियतमा आ !
नई पोस्ट मौसम (शीत काल )
देखते है जिंदगी जीतती है
ReplyDeleteया हार जाये भी तो
जीत का है भान करता ।
...........गहन और सुन्दर |
वाह !
ReplyDeleteबहुत सुंदर.....
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