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Monday, 27 January 2014

जीवन

जीवन 
दोनों के पास है
एक  है इससे क्षुब्ध
दूसरा है इससे मुग्ध
एक पर है भार बनकर बैठा
दूजा इसपर बैठकर है ऐंठा। 
जीवन 
दोनों के पास है,
एक ही सिक्के के,
दो पहलूँ कि तरह। ।
जीवन 
एक महल में भी कराहता है 
तो कहीं फूंस के छत के नीचे दुलारता है। 
कोई अमानत मान इसे संभाल लेता 
तो दूजा तक़दीर के नाम पर इसे झेलता। 
जीवन 
दोनों के पास है 
एक ही मयखाने के 
भरे हुए जाम और टूटे पैमाने की तरह। । 
जीवन 
मुग्ध सिद्धार्थ जाने क्यों
हो गया इससे अतृप्त,
अतृप्त न जाने कितने
होना चाहते इसमें तृप्त। 
जीवन 
दोनों के पास है ,
एक ही नदी के 
बहती धार और पास में पड़े रेत की तरह। ।
जीवन 
शीतल बयार है यहाँ
वहाँ चैत की दोपहरी,
वो ठहरना चाहे कुछ पल 
जबकि दूजा बीते ये घडी। 
जीवन 
दोनों के पास है ,
एक ही पेड़ के 
खिले फूल और काँटों की तरह। । 
एक ही नाम के 
कितने मायने  है ,
बदरंग से रंगीन 
अलग-अलग आयने है, 
लेकिन जीवन अजीब है 
बस गुजरती है जैसे घड़ी की  टिक-टिक। 
उसका किसी से 
न कोई मोह न माया है ,
वो तो गतिमान है उसी राहों पर 
जिसने उसे जैसा मन में सजाया है। ।