सर्द हवा ने
आंतो को जमा दिया
भूख कुछ जकड़ गई ,
नीले-पीले डब्बे
रंग-बिरंगी दुनिया से निकल कर
अपने आत्मा से अलग
ठुकराये जाने के दुःख से कोने में गड़ी
सूखे टहनियों सी हाथ के साथ
कई अंजान से एक जगह मिलाप
धूं -धूं धधकता है।
सुंगन्धो से मन गदगद
सर्द हवा आंतो को बस
ऐसे ही जकड़ रखो की ये आवाज न दे । ।
जब सूरज जकड़े गएँ
तो इनकी औकात क्या ?
पर ये काल चक्र
हर समय काल बनकर ही घूमता ,
इन हवाओ में न जाने क्यों
उष्णता है रह रह कर फूंकता।
फिर छल दिया
प्रकृति के रखवालों ने
नीले -पीले डब्बे कि जगह
भर दिया फूलों से
हरी-भरी गलियारों ने ।
आंत अब जकड़न से बाहर
भूख से बेताब है,
धुंध से बाहर हर कुछ
नए रंग-लिप्सा की आवाज है।
पर ,ओह बसंत, क्या रूप है तेरा
कैसे जानूं मैं
आँखों पर अब तक
आंतो की भूख ने
अपना ही परछाई बिठा रखा है। ।
आंतो को जमा दिया
भूख कुछ जकड़ गई ,
नीले-पीले डब्बे
रंग-बिरंगी दुनिया से निकल कर
अपने आत्मा से अलग
ठुकराये जाने के दुःख से कोने में गड़ी
सूखे टहनियों सी हाथ के साथ
कई अंजान से एक जगह मिलाप
धूं -धूं धधकता है।
सुंगन्धो से मन गदगद
सर्द हवा आंतो को बस
ऐसे ही जकड़ रखो की ये आवाज न दे । ।
जब सूरज जकड़े गएँ
तो इनकी औकात क्या ?
पर ये काल चक्र
हर समय काल बनकर ही घूमता ,
इन हवाओ में न जाने क्यों
उष्णता है रह रह कर फूंकता।
फिर छल दिया
प्रकृति के रखवालों ने
नीले -पीले डब्बे कि जगह
भर दिया फूलों से
हरी-भरी गलियारों ने ।
आंत अब जकड़न से बाहर
भूख से बेताब है,
धुंध से बाहर हर कुछ
नए रंग-लिप्सा की आवाज है।
पर ,ओह बसंत, क्या रूप है तेरा
कैसे जानूं मैं
आँखों पर अब तक
आंतो की भूख ने
अपना ही परछाई बिठा रखा है। ।