खामोशी चीखती है लहरों से टकरा कर
औंधे मुँह लेटा जैसे माँ के गोद में
न सुबकता न ही रोता कंकालो की बस्ती से दूर
लगता है गहरी नींद में सोता ।
न सुबकता न ही रोता कंकालो की बस्ती से दूर
लगता है गहरी नींद में सोता ।
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जिंदगी खुद से शर्मसार है
मौत उसको मुँह चिढ़ाती
चिटक रही सूखे टहनियों सी
जिंदगी खुद से शर्मसार है
मौत उसको मुँह चिढ़ाती
चिटक रही सूखे टहनियों सी
दम्भी सभ्यता के वट वृक्ष की ।
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नन्हा फरिस्ता लहरो से खेलकर
मुस्कुरा के चल दिया
पाषाण ह्रदय शिलाओं को भी
आंसुओ से तर गया।
नन्हा फरिस्ता लहरो से खेलकर
मुस्कुरा के चल दिया
पाषाण ह्रदय शिलाओं को भी
आंसुओ से तर गया।
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कितने नींद से जागे अब
उसे सोता सोचकर
कई राहें अब खुल गई नई
उन बंद आँखों को देखकर।
कितने नींद से जागे अब
उसे सोता सोचकर
कई राहें अब खुल गई नई
उन बंद आँखों को देखकर।
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ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, गंगा से सवाल पूछने वाला संगीतकार - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeletemera hindi blog jarur dekhe
ReplyDeletehttp://www.khuskhabar.com/
बहुत ही उम्दा भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteआभार!
इसी प्रकार अपने अमूल्य विचारोँ से अवगत कराते रहेँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
संवेदनशील ... मार्मिक ... कितने प्रश्न छोड़ गया वो नन्हा फ़रिश्ता ...
ReplyDeleteबेहद संवेदनशीन और भावमय रचना की प्रस्तुति।
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