Tuesday, 8 September 2015

नन्हा फरिस्ता

खामोशी चीखती है लहरों से  टकरा कर  
औंधे मुँह लेटा जैसे माँ के गोद  में 
न सुबकता न ही रोता कंकालो की बस्ती से दूर
लगता है गहरी नींद में सोता  ।

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जिंदगी खुद से शर्मसार है
मौत उसको मुँह चिढ़ाती
चिटक रही सूखे टहनियों सी
दम्भी सभ्यता के वट वृक्ष की  ।

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नन्हा फरिस्ता लहरो से खेलकर 
मुस्कुरा के चल दिया 
पाषाण ह्रदय शिलाओं को भी 
आंसुओ से तर गया। 

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कितने नींद से जागे अब 
उसे सोता सोचकर  
कई राहें अब खुल गई नई 
उन बंद आँखों को देखकर। 
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5 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, गंगा से सवाल पूछने वाला संगीतकार - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. mera hindi blog jarur dekhe
    http://www.khuskhabar.com/

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  3. बहुत ही उम्दा भावाभिव्यक्ति....
    आभार!
    इसी प्रकार अपने अमूल्य विचारोँ से अवगत कराते रहेँ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  4. संवेदनशील ... मार्मिक ... कितने प्रश्न छोड़ गया वो नन्हा फ़रिश्ता ...

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  5. बेहद संवेदनशीन और भावमय रचना की प्रस्‍तुति।

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