Wednesday 31 August 2016

दिल्ली और बारिश

                       
                                 क्या आप दिल्ली में रहते है ? हम तो खैर नहीं है फिलहाल वहा। तो फिर आपको दिल्ली की बारिश रुलाई या आपने रास्तो पर पटे पानी के सैलाब को स्विमिंग रोड समझ उसको पार करते  समय इंग्लिश चैनल पर विजय की खुशफहमी का अहसास किया, अगर नहीं है तो उसे कोसने की जगह नगरपालिका का शुक्रिया अदा करे और इसका आनंद ले । इन रोड पर बहते धार को देखकर भावुक होने से बचे। लगता है अपने लोगो में भावुकता की कमी हो गई है तभी तो मीडिया हमें भावुक होने के बहाने देता और खुद भी भावुक हो जाता है। पहले पत्रकारिता में भावुकता कम तथष्टता ज्यादा होता था किन्तु समय कि मांग ने लगता है कुछ प्रभाव बदल दिया है ।असहिष्णुता का राग अलापते-अलापते ये खुद कही असहिष्णु तो नहीं हुए जा रहे है। ये तो हमारे सांस्कृतिक उद्घोषणा है की हम आलोचना को अपने उत्कर्ष के लिए प्रयत्नशील औजार समझते है। तभी तो कबीर ने कहा -"निंदक नियरे    राखिये " और हम है की सबके सब पीछे ही पर गए। 
                              अब ऐसा भी क्या कह दिया।  बहुत छोटा सो सवाल तो पूछा ,आखिर जब दिल्ली के रोड पानी से तृप्त हो तो भला ये जानने में कोई गुनाह तो नहीं है की आखिर पहुचने के लिए और कौन से साधन लिए गए,रोड पर कार और नाव एक साथ हो इससे सुन्दर दृश्य और क्या होगा? उन्होंने तो अगर देखा जाय तो भरतीय छात्रों के अंदर किसी भी कार्य को पूरा करने की जिजीविषा को सलाम किया। और हम है की उनकी आलोचना समझ बैठे है। लगे हाथ हमने अपने सरकारों को भी कोसना शुरु कर दिया। लेकिन हम भूल रहे है की हमारे यहाँ हर साल रूप बदल-बदल कर ये सैलाब कही न कही आता ही रहता है। कही के सड़क जाम हो जाते तो कही के कही पूरा क्षेत्र ही कट जाता। इन सबसे नीति-नियंता वाकिफ है। अब अगर वो दिल्ली को दुरुस्त कर दे फिर हम दिल्ली के बाहर वाले ही कहना शुरू कर देंगे कि हमारे साथ भेद-भाव किया जा रहा है। आखिर ऐसी परिस्थिति के दिल्ली में उत्तपन्न होने के बाद ही बाकियों का दुख-दर्द समझा जा सकता है। नहीं तो उड़न  खटोला पर बैठ का इन स्थितियों का जायजा लेने जाना पड़ता है। इससे सरकारी खजाना पर बोझ पड़ता वो अलग। दिल्ली का ये सब नजारा सरकारी धन का दुरूपयोग रोकने में मददगार है हम ऐसा क्यों नहीं सोच सकते। ताज्जुब है। हमें भी ख़ुशी होती है जब सबको एक प्रकार से देखा जाता है। और रही दिल्ली की सुंदरता की बात तो यह सिर्फ राजधानी है और हम है कि दिल्ली को "राजरानी" समझने लगे है। दिल्ली सभी को मोहती है स्वभाविक रूप से विश्व के अन्य गणमान्य भी दिल्ली के इस सुदरतम नज़ारे का आनंद लेने आ सकते है। पर्यटन विभाग को इसके लिए तैयार रहना चाहिए। 
                      ऐसे मीडिया भी तो दिल्ली में बारिश न हो तब समाचार और बारिश हो जाए तो समाचार। वो तो नगरपालिका से लेकर मंत्री तक खुश होंगे की अपना मीडिया देश की आलोचना सुनना नहीं पसंद नहीं करता , नहीं तो जवाव देते या न देते कैमरा तो पीछे-पीछे तो आता ही। हम है की विश्व की महाशक्ति को अपनी तकलीफ सुना-सुना कर करार पर करार करने में लगे है ऐतिहासिक दस्तावेज की किताब मोटी होती जा रही है। अब जब अगर आप ऐसा समझते है की यह आलोचना है तो हमें तो खुश होना चाहिए की दिल्ली की इस समस्या को विश्व के महाशक्ति ने अगर खुद संबोधित किया है तो इस पर भी एक करार कर ही लेगा ताकि दिल्ली को इससे निजात मिल सके। इस पक्ष को देखने में क्या बुराई है।  बाकी जो इन सैलाब में घिरे है वो चैनलो पर ये दिल्ली जैसे निम्न कोटि का सैलाब कितना देखे। 

4 comments:

  1. >>
    कब कहाँ क्या बरस जाये किसे पता है
    इस देश में हर जगह बह रही गंगा है ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-09-2016) को "शुभम् करोति कल्याणम्" (चर्चा अंक-2453) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. समाचार निरंतर चलते रहना चाहिए बारिश की तरह .... बड़े-बड़े बलमों के बंगलों में भरे पानी तो तब और भी मजा आता, सुर्खियां चलती झड़ी की तरह ...

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  4. अच्छा व्यंग है ... बारिश हो या न हो ...ये सच है आज का मीडिया खबर तो चलायेग ही ... उसे कभी तारीफ़ कभी बुराई ... कुछ तो करना ही है ....

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