फिक्र इतना ही हो कि
फिक्र में, फिक्र हो..!
जिक्र इतना ही हो कि
जिक्र में, जिक्र हो..!
यूँ ही बातों में जब सिर्फ
बात ही होती है..!
कई बात, सिर्फ बातों के लिए
साथ होती है..!
फलसफा तो कई हम
यूं ही, उधेर बुनते रहते है..!
अपनी क्या कहे,
सिर्फ सुनते रहते है!
हर हाथ धनुष और तीरों से
सजे-सजे से हर ओर दिखते है!
निगाहें टिकी और कही
पर तीर कही और चलते है!
ये दौर कुछ भ्रम सा
और, भरमाया हुआ सा दिखता है!
हलक में आवाज तो है,
लेकिन, चीत्कार भी दबाया हुआ सा लगता है!
कोई किसी और के लिए,
भला, भलां यहाँ करेगा किया?
फिक्र में हमें खुद के सिवा
और दिखेगा क्या..?
इसलिए फिक्र में,
सिर्फ फिक्र न हो..!
चलो ऐसा करे, फिक्र में,
कहीं हम तो, कहीं तुम भी हो !!
सुंदर रचना
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ फरवरी २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आभार
ReplyDeleteवाह, कोरी फिक्र करने वालों पर शानदार तंज..
ReplyDeletebahut accha Facts hai
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