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Tuesday, 6 May 2014

शक्तिपीठ भदुली भद्रकाली.......१०० वीं पोस्ट

                                               ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। 
                                                दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोSस्तु ते। । 
"शक्तिपीठ भदुली भद्रकाली मंदिर"
             अकस्मात कभी कुछ संयोग ऐसा बन जाता है कि अपनी हृदय मे आह्लादित ख़ुशी दैवीय कृपा के रुप मे प्रतीत होता है। ऐसा ही ख़ुशी महसूस  हुई जब "शक्तिपीठ भद्रकाली " के दर्शन क सौभाग्य प्राप्त हुआ। काफी वर्ष झारखण्ड में व्यतित करने के बाद भी इस शक्तिपीठ के विषय मे अनभिज्ञ था। कहते है जब माता बुलाती है तो कोइ न कोइ सन्योग निकल हि आता है। वैसा हु कुछ इस दर्शन के दौरान हुआ।  लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विद्यानंद झा की पुस्तक "शक्तिपीठ भदुली भद्रकाली" जो कि उक्त शक्तिपीठ के ही है उपर है,जो झारखण्ड राज्य के चतरा ज़िला अन्तर्गत "ईटखोरी " प्रखंड मे अवस्थित है। पुस्तक के लोकार्पण समारोह मे शामिल होने वावत निमंत्रण  पत्र प्राप्त हुआ। समारोह की तिथी ४ मई रविवार को सुनिश्चित कि गई थी। श्री विद्यानन्द  झा बिहार प्राशासनिक सेवा से सेवानिवृत अधिकारी है। अपने प्रशासनिक सेवा के दौरान कई वर्ष उस क्षेत्र मे विभिन्न दायित्व का  निर्वहन उन्होने किया था।  
 तीन -चार दिन पूर्व निमंत्रण पत्र मिला था। किन्तु गर्मी के बढ़ते प्रकोप के काऱण निश्चित निर्णय नहीं  कर पा रहा था।अकस्मात मौसम ने रंग बदलना शुरु किया जैसे उक्त कर्यक्रम मे शामिल होने के लिये देवी माँ  कि क्रिपा वृष्टि हो रही है। पहले तो सोचा स्वयं चला जाय किन्तु श्रीमतीजी ओर और पुत्र के द्वारा उग्र विरोध प्रदर्शन उस क्षणिक विचार के उपर पूर्ण विराम लगा  दिया। अवकाश का दिन होने के कारण मेरे पास और कोइ आधार नहीं था जिसके बहाने मै क़ोई   दलील पेस कर पाता।इसी दौरान एक सहकर्मी मित्र ने भी उक्त कार्यक्रम मे शामिल होने के लिये मिले निमंत्रण के विषय मे बताया ,चलो एक से अच्छे दो परिवार। भक्ति और पर्यटन के अपने अपने ख़ुशी से श्रीमतीजी और पुत्र दोनो रोमांचित हो गये  जैसे  हि  मैने उद्घोषणा किया  कि कल प्रातः हमलोग  "शक्तिपीठ भद्रकाली "  लिए प्रस्थान करेंगे।
माँ भद्रकाली
                             सुबह-सुबह रविवार के दिन तय कि हुई गाड़ी द्वार पर खडी हो गई। निर्धारित समय पर हमलोग सभी तैयार थे किन्तु मित्र सपरिवार आने मे कुछ विलम्व हो गये। जगह के विषय में ज्यादा जानकारी नही होने के कारण मनोज गाड़ी चालक, जो क़ी उपयुक्त व्यक्ती था उसने बताया कि  ईटखोरी बोकारो से लगभग २०० कि मी की दुरी पर है और अनुमानतः तीन से चार घंटे लगेंगे। बोकारो से सीधे राष्ट्रिय राजमार्ग -२३ पकड़ कर  रामगढ़  कैंट   के रास्ते हम बढ़ चले। बीच में लगभग ४० की मी की दुरी पर रास्ते मे रजरप्पा मुख्य सड़क से लगभग १० की मी अंदर दामोदर और भैड़वी नदि के मुहाने  एक प्रमुख विख्यात शक्तिपीठ  माँ छिन्नमष्तिका है जिसे हमने मन ही मन  प्रणाम किया।                      रामगढ़ कैंट झारखण्ड का  एक प्रमुख जिला शहर है साथ हि साथ यहॉँ सिख तथा पँजाब रेजिमेंट के काऱण इसकी  अपनी महत्ता है। जिसकी दुरी बोकारो से लग्भग ७० की मी है।  रामगढ़ से लगभग पांच कि मी पहले हि हमने  राष्ट्रिय राज मार्ग -३३ से होते हुए हजारीबाग कि ओर चल पड़े। पुरे रास्ते रमणीक माहोर दृशय देख दिल खुश हो गया। प्रकृति की खुबसुरती  का आनंद कुछ रुक उठने क मन कर रह था किन्तु पहले हि विलम्ब होने के काऱण ये इच्छा को दबा दिया ।   हजारीबाग से लगभग २० की मी राष्ट्रिय राज मार्ग -३३ पर चलने के बाद बीच से इटखोरी जाने वाले रोड मे मूड़ गये। जहाँ एक छोटा बोर्ड रोड के किनारे इटखोरी मोङ दर्शाते हुये लग हुआ है।   जहाँ से लगभग ३० की मी और दुरी शेष था। 

                     लगभग ११:३० बजे हम मंदिर के मुख्य प्रांगण मे पहुच चुके थे। वही एक सभा मंडप था जिसके अन्दर पुस्तक लोकार्पण का समारोह आयोजित किय गया था। सबसे पहले हमने माँ कि पूजा अर्चना कि।  अष्टधातु गोमेद से बनी माँ कि मूर्ति से अलौकिक आभा को प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर किया जा सकता है। माँ का ये मंदिर "भदुली " नदी के  किनारे स्थित है इसलिए "भदुली भद्रकाली" के रुप मे से भी  ये प्रषिद्ध है।मंदिर परिसर काफी मनोहर और आकर्षक है। प्रागै ऐतिहासिक काल से शक्ति स्वरूप भगवती का प्रसिद्ध पुजा स्थल है। ईटखोरी का नामकरण बुद्ध काल से सम्बद्ध है और किवदंती है की यहाँ गौतम बुद्ध अटूट साधना किये थे। जैन साहित्य के १० वे तीर्थंकर शीतला स्वामी का जन्म स्तन भदुली को ही कहा जाता है।   पंडित विद्यानन्द  झा ने अपनी पुस्तक मे इस मन्दिर के पौराणिकता के साथ-साथ इसके एतिहासिक पहलूँ पर भी  प्रकाश डाला  है।  आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह स्थान प्रागैतिहासिक है एवम महा काव्य काल ,पूराण काल से संबन्धीत है। ऐतिहासिकता के दृष्टिकोण से इस मन्दिर का निर्माण पाल वंश के राजा महेन्द्र पाल प्रथम (९८८ से १०३८ ई )के शासन के दौरान किय गया। यह स्थल हिन्दू ,जैन और बौद्ध धर्म के प्राचीन काल से समन्वय स्थल है। 


     
पुस्तक "शक्तिपीठ भदुली भद्रकाली" का लोकार्पण 
      पंडित विद्यानन्द  झा कि पुस्तक उक्त  शक्तिपीठ के आध्यात्मिकता  , पौराणिकता  और ऐतिहासिकता के विभिन्न बिन्दूओं के बीच परस्पर अनुसंधानात्मक विवेचना है। माँ भद्रकाली का प्रादुर्भाव ,उपासना ,माहात्म्य आदि विभिन्न महत्वपूर्ण बिन्दुओ क वर्णन इस पुस्तक मे है। लोकार्पण समारोह में जिला प्रशासनिक अधिकारियो के आलावा मुख्य अतिथि के रुप मे डा विन्देश्वर पाठक,जो कि किसी परिचय के मोहताज नहीं है और "सुलभ-स्वछता -आंदोलन " से दुनिया उन्हे जानती है , समारोह स्थल पर मौजूद थे। मंच पर और भी कई प्रख्यात लेखक मंचासीन थे। कार्यक्रम का आयोजन पुस्तक के प्रकाशक  "सरोज साहित्य प्रकाशन " दरभंगा (बिहार ) के द्वारा किया गया था। ज्ञात हो की पंडित झा की कई कृतियाँ मैथिली मे भी  है। 
धर्म विहार 
                  
      समारोह  के दौरान कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी  प्रस्तुत किये गये। उसके प्रसाद स्वरूप भोजन कि समुचित व्यवस्था आयोजको द्वार कि गई थी।  सभी प्रसाद ग्रहण के लिये प्रस्थान किये। हमलोगो ने भी प्रसाद ग्रहण किया। समय अपने अंदाज में निकलता जा रहा पुरा मन्दिर परिसर भी  नहि घुमा अंतः उसके बाद मन्दिर परिसर के आलावा चारो ओर फैले गहन जॅंगल मे छाये नीरव शांती को महसुस कर, चुंकि सुरज भी मध्यम पड्ता जा रहा था।  इसलिए समय और इजाजत नहि दे रह था कि उस शांति क और आनन्द ले सके। बच्चे भी अब थकान महसूस कर रहे थे।  अब घर जल्द-से जल्द पहुचने क था ,घङी की सुइ छह पर था। अतः हम  सभी गाडी मे सवार हो मा को प्राणाम कर वापस वापस बोकारो के लिये प्रस्थान कर गये।      
                 माँ भद्रकाली सब पर कृपा करे। जय माँ भद्रकाली।