बात तो सही है अगर हरा भरा सावन सालों भर किसी के लिए है तो वो हमारा मीडिया ही है कभी मंदी नहीं छाता है,इनके रोजगार के लिए सरकार कोई न कोई योजना समय समय अपने पिटारे से खोलती रहती है।और ये मीडिया वाले को तो समझ तो आता नहीं बस लगते है आलोचना करने। आलोचना -समालोचना भी ऐसा की अंत तक कोई निष्कर्स नहीं निकलता और अंतिम ओवर में निर्णय सीधे दर्शको के हाथ में छोर देते है।अगर निर्णय ये हम जैसे ढाई आखर पड़े हुए को ही करना है तो इतने ज्ञानी जानो को बुलाने की क्या जरुरत है हमें ही बुला लिया करे।
अब देखिये ये एफ डी आई(फिक्स डायरेक्ट इनकम ) का क्या सुन्दर नीति लागु किया तो सभी को उसमे संशय सरकार के नियत में दिख रहा है।जिनकी नियत में खुद खोट हो उनको तो दुसरे में भी खोट नजर आएगा ही,अब ऐसे सक्की लोगो के कारण सरकार अपना राजधर्म तो छोड़ नहीं सकती।इसलिए तुलसीदासजी ने रामायण में कहा है"जेहि के रही भाबना जैसी प्रभु मुरत देखि तिन्ह तैसी " अब बाकि पार्टियों के भावना में ही खोट है तो सरकार क्या कर सकती है। और ये समाचार प्रबंचक भी सरकार के आलोचना में अस्तुतिगान को 24x7 चलाने में लगे हुए है, समाचार पे समाचार ,सीधी बात से प्राइम टाइम और विशेस तक ये एफ डी आई का मुद्दा छ गया। आखिर अभी भी कुछ पार्टी जनता और गरीबो के हित से अपने आप को अलग नहीं रखा है,इसलिए समाजबादी हनुमान हमेसा संजिबानी लिए तैयार है आखिर इस रंछेत्र में सरकार इन्ही गरीबो के हित के कारन ही तो है। फिर ये भी तो कहा गया है "बड़े सनेह लघुन्ह पर करही।गिरी निजि सिरनि सदा त्रीन धरही।। ये गुनी ज्ञानी सरकार इस बात को समझती है तभी तो ये गरीब किसानो के लिए इतना प्रयास रत है की अपने आपको दाव पर भी लगा दी।तभी तो ये जानते हुए भी की पेड़ पर पैसा नहीं लगता ,ये पेड़ में फल को सडा कर सीधे पैसे उगने की नीति बनाये ताकि हमारे किसान को कोई समस्या ही न रहे।इसलिये तो इस नीति को एफ डी आई(फिक्स डैरेक्ट इनकाम) की नीति कहा गया है।लेकिन बाकि सभी बिपक्छी पार्टियो को सब गलत ही दीखता है।
सभी चिंतित है ,पता नहीं ये सरकार आखिर क्यों किसानो के लिए इतना परेशान है और क्यों आखिर किराने और रहरी वालो से हमारी सरकार नाराज हो रखा है।हमें तो यही नहीं समझ आ रहा है की अगर एफ डी आई जायेगा क्या परेशानी हो जाएगी। एक महोदय का कहना है की ये किरना और रहरी वाले ख़तम हो जायेगे।अजीब बात है सरकार तो गरीबी उन्मूलन के लिए पता नहीं कितना कार्क्रम चला रही है ,नए-नए मानक तय किया जा रहा है,पर कम्बखत न गरीब कम हो रहे है और न ही गरीबी।अगर इस एफ डी आई से ये कम हो जायेगा तो इसमें परेशानी क्या है।ये तो भला हो वोलमार्ट महोदय का की उन्होंने इस महान सेवा का बीरा हमारे लिए अपने कंधो पर उठाने को तैयार बैठे है।बरना आजकल कौन से कंपनिया इस तरह के सामाजिक कार्य में अपना सहयोग देती है।ये सरकार बहुत सोच समझकर फैसला किया है क्योकि फिक्स डैरेक्ट इनकाम (एफ डी आई) ये तो नाम से ही जाहिर है।फिर भी बे-बजह सभी गरीबी की डीग्री लिए पड़े -लिखे लोग हमारे पी एम के सर्ट उतारने में लगे हुए है।अगर इतने बड़े अर्थशास्त्री कोई शास्त्र सम्मत बात बता रहे है तो उसे समझाने की कोसिस करनी चाहिए।भाई देश में इतना अनाज हर साल होता है पर सरकार आपके घर तो रखेगी नहीं और रखने का गोदाम बना नहीं सकते क्योकि विपक्छ तो सिर्फ 2जी और कोयला कौन खा रहा है उसी के पीछे परे है ,इनको गोदाम बनाने का समय दे तब ना।कितना अच्छा सुबिचार है की ये कंपिनया गोदाम बना कर उसे जमा करेगी उससे भी नहीं होगा तो अपने देश के गोदाम में जमा कराएगी आखिर "अन्न देबो भव "बर्बाद करना तो पाप है,ये गेरुआ बस्त्र बाले भी नहीं समझ रहे।उनकी मति क्यों मारी गई।टाई सुट में जब रंग बिरंगी गाड़ियो में सीधे खेत से सामान उठेगा तब हमारे किसान के प्रफुलित मनोदसा को कोई समझाने की आखिर कोशिश क्यों नहीं कर रहा? ये सब छोटे मोटे बनिया हमारी किसानो की ऊपर उठते देखना नहीं चाहते इस लिए पानी पी कर हमारे ज्ञानी अर्थशास्त्री के पीछे पर गए। जबकि ये बार बार बताया जा रहा है की हम 1991 की हाल पर है और उस अवस्था से अभी के बजिरे आला बहार लाये थे ,अब तब से अभी तक का जमा पूंजी अगर 2जी ,कोमंवेल्थ ,कोयला में खर्च हो गया है तो कही न कही से पैसा लाना होगा न ,आखिर ये जमा भी इन्ही ने क्या था।
आपने देखा नहीं कोमन्वेल्थ के समय किस प्रकार से झुग्गी झोपड़ी खत्म हो गया और आज दिल्ली कैसी है ,इन सब बातो को समझाते हुए भी नियत पर संदेह करे यह ठीक नहीं।जिसे घोटाले का नाम देकर बेवजह बदनाम करने की कोसिस की जा रही है ,दरअसल ये घोटाले की नीति देश के कोष को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने की नीति है।जिसे विशेष परिस्थिति के लिए हर सरकार अपने समय में जारी करती है।आखिर देश का खजाना जब खाली होगा तब इसे उपयोग में लाया जायेगा,अफवाहों से बचने की कोशिस करे।ये मंत्रीगण देश की जनता को बढिया से जानती है और उनको पता है की कुछ लोगो के अत्यधिक ज्ञान की डफली जो बजाये घूम रहे है उनको फोर देंगे,आप भी भुलावे में न आये इनकी नेकनीयती पर संदेह न करते हुए समझने की कोशिश करे।
अब देखिये ये एफ डी आई(फिक्स डायरेक्ट इनकम ) का क्या सुन्दर नीति लागु किया तो सभी को उसमे संशय सरकार के नियत में दिख रहा है।जिनकी नियत में खुद खोट हो उनको तो दुसरे में भी खोट नजर आएगा ही,अब ऐसे सक्की लोगो के कारण सरकार अपना राजधर्म तो छोड़ नहीं सकती।इसलिए तुलसीदासजी ने रामायण में कहा है"जेहि के रही भाबना जैसी प्रभु मुरत देखि तिन्ह तैसी " अब बाकि पार्टियों के भावना में ही खोट है तो सरकार क्या कर सकती है। और ये समाचार प्रबंचक भी सरकार के आलोचना में अस्तुतिगान को 24x7 चलाने में लगे हुए है, समाचार पे समाचार ,सीधी बात से प्राइम टाइम और विशेस तक ये एफ डी आई का मुद्दा छ गया। आखिर अभी भी कुछ पार्टी जनता और गरीबो के हित से अपने आप को अलग नहीं रखा है,इसलिए समाजबादी हनुमान हमेसा संजिबानी लिए तैयार है आखिर इस रंछेत्र में सरकार इन्ही गरीबो के हित के कारन ही तो है। फिर ये भी तो कहा गया है "बड़े सनेह लघुन्ह पर करही।गिरी निजि सिरनि सदा त्रीन धरही।। ये गुनी ज्ञानी सरकार इस बात को समझती है तभी तो ये गरीब किसानो के लिए इतना प्रयास रत है की अपने आपको दाव पर भी लगा दी।तभी तो ये जानते हुए भी की पेड़ पर पैसा नहीं लगता ,ये पेड़ में फल को सडा कर सीधे पैसे उगने की नीति बनाये ताकि हमारे किसान को कोई समस्या ही न रहे।इसलिये तो इस नीति को एफ डी आई(फिक्स डैरेक्ट इनकाम) की नीति कहा गया है।लेकिन बाकि सभी बिपक्छी पार्टियो को सब गलत ही दीखता है।
सभी चिंतित है ,पता नहीं ये सरकार आखिर क्यों किसानो के लिए इतना परेशान है और क्यों आखिर किराने और रहरी वालो से हमारी सरकार नाराज हो रखा है।हमें तो यही नहीं समझ आ रहा है की अगर एफ डी आई जायेगा क्या परेशानी हो जाएगी। एक महोदय का कहना है की ये किरना और रहरी वाले ख़तम हो जायेगे।अजीब बात है सरकार तो गरीबी उन्मूलन के लिए पता नहीं कितना कार्क्रम चला रही है ,नए-नए मानक तय किया जा रहा है,पर कम्बखत न गरीब कम हो रहे है और न ही गरीबी।अगर इस एफ डी आई से ये कम हो जायेगा तो इसमें परेशानी क्या है।ये तो भला हो वोलमार्ट महोदय का की उन्होंने इस महान सेवा का बीरा हमारे लिए अपने कंधो पर उठाने को तैयार बैठे है।बरना आजकल कौन से कंपनिया इस तरह के सामाजिक कार्य में अपना सहयोग देती है।ये सरकार बहुत सोच समझकर फैसला किया है क्योकि फिक्स डैरेक्ट इनकाम (एफ डी आई) ये तो नाम से ही जाहिर है।फिर भी बे-बजह सभी गरीबी की डीग्री लिए पड़े -लिखे लोग हमारे पी एम के सर्ट उतारने में लगे हुए है।अगर इतने बड़े अर्थशास्त्री कोई शास्त्र सम्मत बात बता रहे है तो उसे समझाने की कोसिस करनी चाहिए।भाई देश में इतना अनाज हर साल होता है पर सरकार आपके घर तो रखेगी नहीं और रखने का गोदाम बना नहीं सकते क्योकि विपक्छ तो सिर्फ 2जी और कोयला कौन खा रहा है उसी के पीछे परे है ,इनको गोदाम बनाने का समय दे तब ना।कितना अच्छा सुबिचार है की ये कंपिनया गोदाम बना कर उसे जमा करेगी उससे भी नहीं होगा तो अपने देश के गोदाम में जमा कराएगी आखिर "अन्न देबो भव "बर्बाद करना तो पाप है,ये गेरुआ बस्त्र बाले भी नहीं समझ रहे।उनकी मति क्यों मारी गई।टाई सुट में जब रंग बिरंगी गाड़ियो में सीधे खेत से सामान उठेगा तब हमारे किसान के प्रफुलित मनोदसा को कोई समझाने की आखिर कोशिश क्यों नहीं कर रहा? ये सब छोटे मोटे बनिया हमारी किसानो की ऊपर उठते देखना नहीं चाहते इस लिए पानी पी कर हमारे ज्ञानी अर्थशास्त्री के पीछे पर गए। जबकि ये बार बार बताया जा रहा है की हम 1991 की हाल पर है और उस अवस्था से अभी के बजिरे आला बहार लाये थे ,अब तब से अभी तक का जमा पूंजी अगर 2जी ,कोमंवेल्थ ,कोयला में खर्च हो गया है तो कही न कही से पैसा लाना होगा न ,आखिर ये जमा भी इन्ही ने क्या था।
आपने देखा नहीं कोमन्वेल्थ के समय किस प्रकार से झुग्गी झोपड़ी खत्म हो गया और आज दिल्ली कैसी है ,इन सब बातो को समझाते हुए भी नियत पर संदेह करे यह ठीक नहीं।जिसे घोटाले का नाम देकर बेवजह बदनाम करने की कोसिस की जा रही है ,दरअसल ये घोटाले की नीति देश के कोष को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने की नीति है।जिसे विशेष परिस्थिति के लिए हर सरकार अपने समय में जारी करती है।आखिर देश का खजाना जब खाली होगा तब इसे उपयोग में लाया जायेगा,अफवाहों से बचने की कोशिस करे।ये मंत्रीगण देश की जनता को बढिया से जानती है और उनको पता है की कुछ लोगो के अत्यधिक ज्ञान की डफली जो बजाये घूम रहे है उनको फोर देंगे,आप भी भुलावे में न आये इनकी नेकनीयती पर संदेह न करते हुए समझने की कोशिश करे।