Friday 14 February 2014

वेलेंटाइन डे

क्या विशेष है
ये प्रेम दिवस कैसा संदेश है ?
कण-कण में जहाँ प्रेम है रमता
सुदामा कि पोटली से अब तक
निर्झर प्रेम है झरता।
मीरा कि तान अब भी गुंजती है
कन्हैया को  गोपियाँ भी ढूंढती है।
हर उत्सव है सजाये
महीना दर महीना ख़ुशी मनाये।
प्रेम जब घट -घट में हो बसा
क्यों फिर दिन इन्तजार कराये। 
कब राम ने शबरी के बेर को
तौल कर मोला था
उत्कट प्रेम ने कभी यहाँ
अर्थ का द्वार न खोला था।
अब भी सजते है
प्रेम सिर्फ प्रेम में पूजते है।
जब शब्दो में समाया विकार है
प्रेम का अर्थ कुछ और भी स्वीकार है। 
रूखे कागज पर ही  इसे ढूंढेंगे
बाजारों में कीमत पर तौलेंगे।
पर प्रेम के लिए -
सुखी दिल कि क्यारीं को पनपायें 
मन के उपवन में संवेदनाएँ  जगाये
बसंत मतवाला हो हर पल गायेगा
सिर्फ आज क्यों हर दिन प्रेम गुनगुनाएगा। । 

7 comments:

  1. प्रेम तो हल पल और हर रूप में होता है..
    प्रेम दिवस पर बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन रचना....

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  2. मन के उपवन में संवेदना जगाने की जरूरत है.
    बहुत सुंदर.

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  4. सहमत सिर्फ आज की कोयन .. प्रेम की लहरें तो सदा उछाल मारनी चाहियें ...
    शायद दिन गति देने के लिए हो ...

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  5. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..

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