ये गाथा अंतहीन है
बनकर मिटने और
मिट -मिट कर बनने की।
प्रलय के बाद
जीवन बीज के पनपने की
और विशाल वट बृक्ष के अंदर
मानव जीवन को समेटने की।
रवि के सतत प्रकाश की
राहु के कुचक्र ग्रास की
कुरुक्षेत्र में गहन अंधकार की
विश्व रूप से छिटकते प्रकाश की।
अद्भुत प्रकृति के विभिन्न आयाम
जीवन के उद्गम श्रोत का भान
पुनः अहं ज्ञान बोध कर
उसे बाँधने को तत्पर ज्ञान।
द्वन्द और दुविधाओं से घिरकर
श्रृष्टि के उत्कृष रचना
अपने होने का अभिशाप कर
अंतहीन विकास के रास्ते
जाने कौन सा वो दिन हो
जब मानव भूख के
हर अग्निकुंड में
शीतल ज्वाला की आहुति पड़े।
-----------------------------
हर उद्भव के साथ
समग्र को समाने का प्रयास
ह्रदय को बस
एक सान्तवना सा है।
काल के आज का कुचक्र
जिनको अपने आगोश में लपेटा है।
प्रारब्ध के भस्म से
मानवता के मस्तिष्क पर
तिलक से शांति का आग्रह।
चिरंतन से उद्धार का उद्घोष
मानव से महामानव
तक कि अंतहीन यात्रा
और इसी यात्रा में
सतयुग कि महागाथा
से कलियुग के अवसान होने तक
हर मोड़ पर अनवरत
मानव के विकास बोझ
और उसके राख तले
बेवस सी आँखे।
अपने लिए
एक नए सूरज के उदय का
अंतहीन इन्तजार करते हुए। ।
बनकर मिटने और
मिट -मिट कर बनने की।
प्रलय के बाद
जीवन बीज के पनपने की
और विशाल वट बृक्ष के अंदर
मानव जीवन को समेटने की।
रवि के सतत प्रकाश की
राहु के कुचक्र ग्रास की
कुरुक्षेत्र में गहन अंधकार की
विश्व रूप से छिटकते प्रकाश की।
अद्भुत प्रकृति के विभिन्न आयाम
जीवन के उद्गम श्रोत का भान
पुनः अहं ज्ञान बोध कर
उसे बाँधने को तत्पर ज्ञान।
द्वन्द और दुविधाओं से घिरकर
श्रृष्टि के उत्कृष रचना
अपने होने का अभिशाप कर
अंतहीन विकास के रास्ते
जाने कौन सा वो दिन हो
जब मानव भूख के
हर अग्निकुंड में
शीतल ज्वाला की आहुति पड़े।
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हर उद्भव के साथ
समग्र को समाने का प्रयास
ह्रदय को बस
एक सान्तवना सा है।
काल के आज का कुचक्र
जिनको अपने आगोश में लपेटा है।
प्रारब्ध के भस्म से
मानवता के मस्तिष्क पर
तिलक से शांति का आग्रह।
चिरंतन से उद्धार का उद्घोष
मानव से महामानव
तक कि अंतहीन यात्रा
और इसी यात्रा में
सतयुग कि महागाथा
से कलियुग के अवसान होने तक
हर मोड़ पर अनवरत
मानव के विकास बोझ
और उसके राख तले
बेवस सी आँखे।
अपने लिए
एक नए सूरज के उदय का
अंतहीन इन्तजार करते हुए। ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (10-03-2014) को आज की अभिव्यक्ति; चर्चा मंच 1547 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteविस्तृत अंतहीन यात्रा के अनेक पढाव .. बहुत ही शशक्त भाव ..
ReplyDeleteसुंदर और सशक्त रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर सशक्त सृजन...!
ReplyDeleteRECENT POST - पुरानी होली.
बहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना ....
ReplyDeleteहार्दिक आभार
ReplyDelete......... सशक्त रचना
ReplyDeleteबहुत गहन और प्रभावी अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteइंतज़ार पूरा होगा …मंगलकामनाएं !!
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