Wednesday 5 March 2014

एक ख्वाहिश

खुली आँखों से 
जो न दिखी हो अब तक 
किया हूँ बंद पलक बस 
तुझे निहारने के लिए       ।। 
प्यास बुझे तेरे प्रेम की 
ऐसी तो  कोई खवाहिश नहीं
बस चाहता हूँ जलूं  और
इसे  निखारने के लिए     ।। 
गूंजती है कई आवाजे 
टकराकर लौट जाती 
बस गूंजती है सनसनाहट 
तूं पास ही है ये जताने के लिए  ।। 
कभी पास-पास हम बैठे  
ऐसा न कर पाया 
दिलजले कई घूमते अब भी 
कुछ तस्वीर जलाने के लिए    ।।
टूटकर तो कितनो ने  
तुझपे इश्क का चादर चढ़ाया है 
मैंने ओढ़ा है तुझे 
खुद को भूलाने के लिए     ।।
कई रंग है तेरे 
सब अपना-अपना ढूढ़ते है 
मैंने मिला दी सबको 
नए निखार लाने के लिए   ।। 
तू इबादत है ,प्रेम है,इश्क या कुछ और 
मुझे मालूम नहीं 
बस ख्वाहिश  है इतनी 
तू छूटे न कभी और कुछ पाने के लिए। ।     

6 comments:

  1. तू इबादत है ,प्रेम है,इश्क या कुछ और
    मुझे मालूम नहीं
    बस ख्वाहिश है इतनी
    तू छूटे न कभी और कुछ पाने के लिए।
    बहुत सुंदर.

    ReplyDelete
  2. तू इबादत है ,प्रेम है,इश्क या कुछ और
    मुझे मालूम नहीं
    बस ख्वाहिश है इतनी
    तू छूटे न कभी और कुछ पाने के लिए। ।
    ...बहुत सुन्दर अहसास...

    ReplyDelete
  3. वाह वाह ! बहुत ही सुंदर सृजन...!

    RECENT POST - पुरानी होली.

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 08/03/2014 को "जादू है आवाज में":चर्चा मंच :चर्चा अंक :1545 पर.

    ReplyDelete
  5. बस ख्वाहिश है इतनी
    तू छूटे न कभी और कुछ पाने के लिए। ।
    ...बहुत सुन्दर !!!

    ReplyDelete