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Thursday, 14 September 2023

हिंदी दिवस

 सबसे पहले आप सभी को हिंदी दिवस की बधाई..!

                   हिंदी की मुखरता यह है कि यहां कोई मात्रा अथवा वर्ण "साइलेंट" नही रहता। एक बिंदु भी अपने वजूद को मुखर होकर कहता है। लेकिन अंग्रेजी में "साइलेंट" एक सामान्य बात है। तो फिर इस "साइलेंट" होने के अपने महत्व है।कई बार आप चाहते हुए भी बहुत कुछ नही कह सकते, चाहे वह आपका घर हो या दफ्तर..! वक्त वेवक्त आपको "साइलेंट" रहना पड़ता है..! सीनियर ऑफिसर किसी काम मे खोट निकाल कर आपको उपदेश दे रहे हो या घर मे श्रीमतीजी किसी बात से रुष्ट हो..! आपको पता है की यहां  "साइलेंट" रहना ही आपके हित मे है अन्यथा यह कभी भी आपके अनावश्यक तनाव का कारण बन सकता है..!  

ये "साइलेंट" की प्रवृति ही ऐसी है कि आपके प्रकृति को बनाता है..! यह हर समय संभव नही है..! जैसे अंग्रेजी के हर शब्द में "साइलेंट" नही होता है..! आपको पता रखना पड़ता है कि कब कौन सा वर्ण कहा "साइलेंट" हो गया है..! इसी "साइलेंट" की प्रवृति को पकड़ने के लिए लोग अंग्रेजी की ओर ज्यादा झुकाव रखते है..! क्योंकि हिंदी में ऐसी कोई प्रवृति नही है और न हिंदी की ये प्रकृति है कि वो कही भी "साइलेंट" रहे। जो भी आता है अपनी उपस्थिति और पहचान को पूरी मुखरता के साथ कहता है..!

           अब जिनको सफलता के सोपान पर चढ़ना है तो कहाँ "साइलेंट" रहना है, ये जानना तो जरूरी है..! जो गांव की पंचायत से लेकर देश की राजनीति में आपको हमेशा दिख जाएगा..! चाहे मुद्दे कितने भी गंभीर क्यों न हो , "साइलेंट" रहना है या बोलना है उसका कोई तय पैमाना नही होता है..! यह मौका और परिस्थिति ही निर्धारित करता है। उसी प्रकार अंग्रेजी भाषा मे कौन सा वर्ण कब "साइलेंट" हो जाएंगे इसका का कोई कायदा और कानून तो है नही। जबकि हिंदी भाषा ने, कब बिंदु का प्रयोग होगा और कब चंद्र बिंदु लगाना है या फिर आधा "र" कब नीचे लगेगा और उसे कब ऊपर बैठना है , उसके भी नियम निर्धारित कर रखे है..! अब इतने नियम कानून कहाँ तक पालन हो सकते है भला ..!

              फिर जिस राह पर चल कर सफलता मिले लोग स्वभाविक रुप से उसी राह पर चलते है..! इसलिए मुझे लगता है देश मे अंग्रेजी के प्रसार-प्रचार में इस भाषा मे निहित "साइलेंट" का खास योगदान है..!

           अब हम हिंदी भाषा पर कितना भी शोर मचाये, लेकिन अंग्रेजी को पता है कि "साइलेंट"  रह कर भी कितना विस्तार हो सकता है...है कि नही..?


Saturday, 14 September 2013

कुछ हिंदी दिवस पर

चित्र :गूगल साभार  
अपनों से जो मान न पाए,   औरों से क्या आस करे 
निज के आगन में ठुकरायें,  उसे कौन स्वीकार करे।  
जिनको आती और भी भाषा ,   हिंदी भी अपनाते है
केवल हिंदी जानने वाले थोडा -थोड़ा सा सकुचाते है।
जिनकी  रोजी-रोटी हिंदी ,उनको भी अभिमान नहीं
उनुवादक से काम चलाये और भाषा का ज्ञान नहीं।
जाने इनके मन में ऐसी कौन सी ग्रंथि विकसित है
कृत्न्घ्नता का बोध नहीं जो भाषा उनमे बसती  है।
मुठ्ठी भर ही लोग है ऐसे जो निज भाषा उपहास करे
ऐसा ज्ञान किस काम का जो दास भाव स्वीकार करे।
भाषाओ के खिड़की  जितने हो, इससे  न इंकार हमें                                  
पर दरवाजे हिंदी की हो, बस इतना ही  स्वीकार हमें।
मातृभाषा में सोचे सब और हिंदी में अभिव्यक्त करे 
प्रेम की भाषा यही जो हमको,  एक सूत्र में युक्त करे 
है उन्नति सबका इसमें ,  ज्ञान-विज्ञान सब बाते है 
भाषा की बेड़ी  को जो काटे अब वो  आजादी लातें  है। ।