
ये एक अजीब मानसिकता है की किसी नए विचार को समय के अनुसार बदलाब के रूप में उसका स्वागत न कर हमेशा से अपने सोच के रेखा अंतर्गत ही रहना चाहते है।किन्तु ये समझते नहीं की जनता की भी अपनी एक सोच और समझ होती है।जहा किताबी अवधारणा से भी परे की जीवन की यथार्त अब्धारना होती है।जिसे की मोदी ने अपने संबोधन में छात्रो के सम्मुख रखा तथा तालियों की गरगारहट युवा की स्वरोक्ति को दर्शाता है।समय के साथ यथार्त परिवर्तन को देश के सामने एक मौका के रूप में देखना चाहिए सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना नहीं होनी चाहिए।इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता की मोदी के साशन कल में गुजरात की प्रगति सभी के लिए विचारनीय तथा अनुसरनीय है।कानून अपना कार्य करता है ओर अगर मोदी के खिलाफ कोई आरोप बनता है तो अवस्य ही विधि समत फैसला उनको स्वीकारना होगा।किन्तु तब तक उनके साशन में हुए सर्वांगीं विकास की अवधारणा जिनको की उन्होंने छात्रो के सामने रखा उसे अपने-आप को ब्रांड रूप में परिवर्तन करने की कोशिश न मानकर हमें उन्हें एक कारगर शासक मानाने से गुरेज नहीं करना चाहिए। अगर ऐसा होता तो बाल्मीकि कभी रामायण नहीं लिख पाते।साथ साथ यह भी विचार करने योग्य है की जनता से ज्यादा येपड़े लिखे विश्लेषक,चिन्तक धर्म ,जात -पात को कही विकास के ऊपर तर्हिज तो नहीं दे रहे है। अगर किसी गलती के लिए दंड का प्रावधान है तो अच्छे कार्यो की जमकर सराहना की जानी चाहिए।