खामोशी चीखती है लहरों से टकरा कर
औंधे मुँह लेटा जैसे माँ के गोद में
न सुबकता न ही रोता कंकालो की बस्ती से दूर
लगता है गहरी नींद में सोता ।
न सुबकता न ही रोता कंकालो की बस्ती से दूर
लगता है गहरी नींद में सोता ।
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जिंदगी खुद से शर्मसार है
मौत उसको मुँह चिढ़ाती
चिटक रही सूखे टहनियों सी
जिंदगी खुद से शर्मसार है
मौत उसको मुँह चिढ़ाती
चिटक रही सूखे टहनियों सी
दम्भी सभ्यता के वट वृक्ष की ।
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नन्हा फरिस्ता लहरो से खेलकर
मुस्कुरा के चल दिया
पाषाण ह्रदय शिलाओं को भी
आंसुओ से तर गया।
नन्हा फरिस्ता लहरो से खेलकर
मुस्कुरा के चल दिया
पाषाण ह्रदय शिलाओं को भी
आंसुओ से तर गया।
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कितने नींद से जागे अब
उसे सोता सोचकर
कई राहें अब खुल गई नई
उन बंद आँखों को देखकर।
कितने नींद से जागे अब
उसे सोता सोचकर
कई राहें अब खुल गई नई
उन बंद आँखों को देखकर।
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