बादलो का कोई कोना छिटककर
जैसे फ़ैल गया मेरे चारो ओर ,
और मैं घिर गया
किसी अँधेरी गुफा में।
साँसों का उच्छ्वास टकराकर
उस बादलो से ,
गूंजती थी नसों के दीवारों में
न सुंझाता कुछ,
फिर फैलते रक्त की लालिमा
जाने कैसे उस कालिखो पर भी
घिर कर उभर आया ।
बीते आदिम मानव के कल का चित्रण
या उन्नतशील होने का द्वन्द ,
संहार के नित नए मानक
गर्वोक्ति संग उद्घोषणा ,
संहार के नित नए मानक
गर्वोक्ति संग उद्घोषणा ,
बैठे कर विचार करते सब आपस में
कैसे हम रक्त पिपासु बने।
कहीं इतिहास तो नहीं दोहरा रहा
अब आदिम मानव रूप बदल ,
अपने गुणों का बखान कर रहे।
अनवरत सदियो के फासले
नाप कर भी
उद्भव का संक्रमण
शायद हमारे रुधिर में
उसी प्रवाह के साथ विदयमान है।
अनवरत सदियो के फासले
नाप कर भी
उद्भव का संक्रमण
शायद हमारे रुधिर में
उसी प्रवाह के साथ विदयमान है।
झटक कर मस्तिष्क झकझोड़ा
छिटकते धुंध से बाहर आया
या उन रौशनी में
जहाँ शायद कुछ दीखता नहीं।
पता नहीं क्या ?
छिटकते धुंध से बाहर आया
या उन रौशनी में
जहाँ शायद कुछ दीखता नहीं।
पता नहीं क्या ?