किसी तीली की वहां जरुरत नहीं,
दिल जहाँ लोगो के जलते है,
कौन यहाँ आग बुझाये अब,
पानी की जगह नफरत ढोते है। ।
किसी पे अब ऐतबार क्या करे,
अब सब खुद में अनजाने से है,
जिनको समझा था मददगार,
उन्ही हाथों ने आशियाने जलाएं है। ।
प्रेम से नफरते बढ़ रही है अब ,
नफरत से भी प्रेम का जूनून है,
इन्शानियत अब सरेआम चौराहे पर,
इन दोनों के बीच पीसने को मजबूर है। ।
बढती जा रही बंजर जमी में,
जज्बे दलदलों में धंस सी रही ,
दिलों की हरयाली मुरझाई सी,
नागफनी हर जगह है पनप रही। ।
कौन ये बेचता है और खरीदार कौन,
भरे बाजार में इनका मददगार कौन,
सब जान कर भी अनजाने से रहते है,
जिन्दा लाश से हर जगह दीखते है। ।
कौन ये बेचता है और खरीदार कौन,
ReplyDeleteभरे बाजार में इनका मददगार कौन,
सब जान कर भी अनजाने से रहते है,
जिन्दा लाश से हर जगह दीखते है। ।
बहुत सुंदर रचना !
नई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
बहुत सार्थक और सुन्दर ......
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